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________________ प्रथम अध्ययन विभिन्न वादों की चर्चा “जीव के बन्धन के कारण को जानकर, उसे दूर करना चाहिये।": . . इस पर जंबुस्वामी ने सुधर्मास्वामी से पूंछा-महाराज ! महावीर भगवान् ने किस को बन्धन कहा है और वह कैसे छूट सकता सुधर्मास्वामी ने उत्तर दिया-हे आयुष्मान् ! मनुष्य जब तक सचित्त-अचित्त वस्तुओं में न्यूनाधिक भी परिग्रह-बुद्धि रहता है, या दूसरों के परिग्रह का अनुमोदन करता है, तब तक वह दुःखों से मुक्त नहीं हो सकता। जब तक वह स्वयं प्राणी-हिंसा करता है, दूसरों से कराता है या दूसरे का अनुमोदन करता है, तबतक उसका वैर वढता जाता है अर्थात् उसे शांति नहीं मिल पाती। अपने कुल और सम्बन्धियों में मोह-ममता रखनेवाला मनुष्य, अन्त में जाकर नाश को प्राप्त होता है क्योंकि धन प्रादि पदार्थ या उसके सम्बन्धी उसकी सच्ची रक्षा करने में असमर्थ होते हैं। . ऐसा जान कर बुद्धिमान् मनुष्य अपने जीवन के सच्चे महत्त्व को विचार करके, ऐसे कर्म-बन्धनों के कारणों से दूर रहते हैं। [२-५]
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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