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________________ तरह क्रियास्थान . - भर निवृत्त रहते हैं। घर को स्याग करके निकले हुए वे भगवंत साधु बलने में, बोलने में अादि कार्यो में सावधानी से किसी प्राणी को दुःख न हो ऐसा व्यवहार करने वाले होते हैं। वे क्रोध, मान, मायर -. और लोभ से रहित, शांत, मोहरहित, ग्रंथीरहित, शकरहित और ___ अमड़ित होते हैं। वे कासे के बर्तन की भांति निलेप, शंख की .. भांति निर्भल, जीव की भांति सर्वत्र गमन करने वाले, अाकाश की -- भांति अवलम्बनहीन, वायु की भांति बन्धनहीन, शरतु के जल की भांति नि ल हृदय वाले, कमलपत्र की भांति निलेप, कछुवे की. . भांति इन्द्रियों की रक्षा करने वाले पक्षी की भांति मुक्त, गैंडे के __ सौंग की भांति एकाकी, मारण्डपही फी भांति सदा जाग्रत, हाथी की भांति शक्तिमान, दैल की भांति बलवान्, सिंह की भांति दुर्धर्ष, मन्दर पर्वत की भांति निष्कंप, · सागर की भांति गम्भीर, चन्द्र के .. समान सौन्य कांतिवान्. सूर्य के समान तेजस्वी, कंचन के समान देदीप्यम न्. पृथ्वी के समान सब स्पर्टी को सहन करने वाले और घी डाली हुई अग्नि के समान तप के तेज से ज्वलन्त होते हैं। . इन साधुओं को पशु, पक्षी, निवासस्थान या वस्त्रादि साधन सामग्री के चारों अन्तरायों में से एक भी अन्तराय किसी भी दिशा में जाने में बाधक नहीं होती। वे निर्मल, अहंकार रहित और अल्प परिग्रही होने के कारण संयम और तप से आत्मा को वासित करते . हुए चाहे जिस दिशा में विचरते हैं। - ये साधु मात्र संयम के निर्वाह के लिये अावश्यक हो उतना ही चार बार (चरस्थ भत्त-एक उपवास), छः बार (छह भत्त-दो उप. वास), आठ बार (अठ्ठम भत्त-तीन उपवास), दस बार (चार उपवास)... . इस प्रकार छः महिने तक छोड़ कर खाते हैं और वह भी विधि के. : M
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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