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________________ सूत्रकृतांग सून उनके छोटे अपराध करने पर भी वे उनको कठिन दण्ड देते हैं. aata मार डालते हैं। हम ] उसी प्रकार अपने आन्तरिक परिवार माता-पिता, भाई-बहिन: स्त्री, पुत्र, पुत्र, पुत्रवधु धाडि को भी उनके छोटे अपराध करने पर भी कठोर दण्ड देते हैं । इस प्रकार उन सब को दुःख, शोक और परि ताप देते हैं । ऐसा करने से वे जरा भी नहीं रुकते । इस प्रकार स्त्री आदि कामभोगों में आसक्त और मूर्छित ऐसे. वे मनुष्य कम-ज्यादा समय काम भोगों को भोगकर, अनेक वैर और - पापकर्मों को इकट्ठा करके श्रायु समाप्त होने पर जैसे पत्थर या लोहे का गोला पानी में नीचे बैठ जाता है, उसी प्रकार पृथ्वी को लांब कर.. नीचे नरक में जाते हैं । वे नरक अंधकार, खून - पीप से भरे हुए, गन्दे और असह्य दुर्गन्ध से पूर्ण, दुस्तर अशुभ और भयंकर होते हैं । वहाँ उनको निद्रा, स्मृति, रति, धृति, और मति से रहित होकर भयंकर वेदनाएँ सतल भोगनी पड़ती है । जैसे कोई पर्वत पर के पेड़ को काटते हुए नीचे लुढ़क जाये, इस प्रकार वे एक योनि में से दूसरी योनि में, एक नरक में से दूसरे नरक में बहुत काल तक अपार दुःख भोगते हुए भटकते रहते हैं और वहाँ से छूटने के बाद भी वे जली विवेक ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते । + [ व धर्मपी दूसरे स्थान का फिर वर्णन करते हैं। ] जगत् यहाँ में कितने ही मनुष्य बडी इच्छा, प्रारम्भ और परिग्रह से रहित धार्मिक और धर्मपूर्वक 'ग्राजीविका चलाने चाले होते हैं। वे सब प्रकार की हिंसा यादि ज्ञान को ढँकनेवाले, कोद देने वाले और बन्धनों के कारण पापकों से जीवन
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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