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________________ (७०) अब न्याय करना वह न्याय है या अन्याय ? सो बात सत्य हुई या नही, अबसे ऐसे पंचायती न्याय करनेमें शामिल होना या नहीं? शेठ कुछ भी न बोल सका. अंतमें विचक्षणाने शात करके पिताको न्याय करने जानेका परित्याग कराया. इस लिये कही कही पर पूर्वोक्त प्रकारसे न्यायमें भी अन्याय हो जाता है इससे न्याय करनमें उपरोक्त दृष्टांत पर ध्यान रखकर न्याय कर्ता को ज्यों त्यों न्याय न कर देना चाहिये, परंतु उसमें बड़ी दीर्घ दृष्टि रख कर न्याय करना योग्य है ! जिससे अन्यायसे उत्पन्न होने वाले दोषका हिस्से. दार न बनना पडे. धर्म करते अतुल धनप्राप्तिपर विद्यापति काष्टान्त.. एक विद्यापति नामक महा धनाढ्य शेठ था. उसे एक दिन स्वममे आकर लक्ष्मीने कहा कि मैं आजसे दसवें दिन तुम्हारे घरसे चली जाऊंगी. इस बारेमें उसने प्रातःकाल उठकर अपनी स्त्रीसे सलाह की तब उसकी स्त्रीने कहा कि यदि वह अवश्य ही जानेवाली है तो फिर अपने हातसे ही उसे धर्ममार्गमें क्यों न खर्च डाले ? जिससे हम आगामी भवमें तो सुखी हों. शेठके दिलमे भी यह बात बैठ गई इस लिए पति पत्नीने एक विचार हो कर सचमुच एक ही दिनमें अपना तमाम धन साता क्षेत्रों में खर्च डाला. शेठ और शेठानी अपना घर धन रहित करके मानो त्यागी न बन बैठे हों इस प्रकार होकर परिग्रह का परिमाण करके अधिक रखनेका त्यागकर एक सामान्य विछौने पर सुख पूर्वक सो रहे, जब प्रात: काल सोकर उठे तब देखते है तो जितना घरमें धन था उतना ही भरा नजर आया. दोनो जने आश्चर्य चकित हुये परंतु परिग्रहका त्याग किया होनेसे उसमेंसे कुछ भी परिग्रह उपयोग में न लेते. जो मिट्टी के वर्तन पहलेसे ही रख छोडे थे उन्हीमें सामान्य भोजन
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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