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________________ (२७) आवश्यकता है, अपना पतिव्रत तवही यथाविधि समाला जाता है, पतिकोभी स्त्रीकी तर्फ उचित मृदुता अवश्य रखनी चाहिये. ऐसे एक दूसरेकी अनुकूलतासे गृहयंत्रके साथ धर्मयंत्रभी अच्छी तरह चल सकता है. तिस बिगर दोनु यंत्र बार वार बिगडे या रुकजाते है अपशब्दादि अपमान त्यागकर स्त्रीका अपनी तरह श्रेय चाहकर वर्तना. त्वद्वारा संतोपी पतिकी तरह समझदार स्त्रीकोभी अपना पतित्रत अवश्य पालन करना, जैसे स्वश्रेयपूर्वक स्व संततिभी सुधारने पावे तैसे सी भर्तार दोनुने संप संतोष पूर्वक सद्वर्तन सेवनमें सदैव तत्पर रहेना चाहिये, जैसे आगेके परुतमें अपना पवित्र शीलभूपणसे भूषित बहोतसी सती शिरोमणीयोने अपना नाम अपने अदभुत चरित्रसे प्रसिद्ध कीया है, तैसे अबीभी सूविवेकी भाइ और भगिनीये पावन शील रत्न धारनकर सुशीलता योगसे भाग्यशाली होनाही योग्य है. ૪૮ પ્રિય વચન વોટનાં. दुसरे मनुष्यको प्रिय लागे ऐसा सत्य और हितकर वचन बोलना. प्रसंगोपात विचारके कहा हुवा हितमित वचन सामने वालेको प्रिय हो पड़ता है. विना विचारा, औसर विगरका, कर्णकटुक भाषण कभी सच्चा हो तोभी अप्रिय होता है, और मीठा, गर्व रहित, विवेकपूर्वक विचारके समयोचित बोलावा वचन बहोत प्रिय और उपयोगी हो पडता है. मगर उसे विपरीत बोलना अहितकारी होता है. जो लोकप्रिय होनेको चाहते हो तो उक्त विवेक समालके धर्मको बाध न आवे तैसा निपुण भाषण करना शीखो. तैसा समयोचित विनय वचन वशीकरण समान समझना. कहाभी है कि ' एक बोल्वो न. शील्यो सब शीख्यो गयो घरमें !''
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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