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________________ (११९) * संकट परिसह उपर कथा. हस्तीनापुर नगरने विशे माणेकचंद शेठ रहेतो हतो. तेमने नेमचंद नामे पुत्र हतो. ते नेमचंदे गुरु पासे धर्म पामीने दिक्षा लीधी. एक दिवसे ते साधु वनमा काउस्सग रहेला हता ते वनमा तेमनी आगळ थई एक चोर कोइनी एक गाय चोरीने चाल्यो जतो हतो, तेना गया पछी पाल्थी ते गायनो धणी आवीने साधुने कहेवा लाग्यो के अहींथी कोई पुरुष गाय लईने जतो जोयो ? साधुए काई जवाब दीधो नहीं अने मौनपणे रहा. आथी ते गायना मालीकने बहुज. , रीस चडी. तेथी तेणे साधुना माथा उपर मोटीनी पाळ करीन तमां धगधगता अंगारा भयो. आथी साधुने धणी वेदना थई तो पण लेशमात्र पोताना परीणाम बगाडया नहीं अने ते गायनो घणी के जेणे अंगारा, पाळ करी माथा उपर मुक्या हता तेना उपर जराए द्वेषभाव लावी तपी गया नहीं अने एकज परणामनी धाराए परीसह सहन करी पोतानुं साधुव्रत खरखरु साचव्यु. अंगाराना योग्ये देहनो नाश थाय ए संभवीतज छे. आथी साधुए चार आहारना पचखाण करी अनीत्य भावना भावी शेष रहेलु आयुष्य पुरु करी त्याज तत्काल अंतगढ केवळी थई मोक्षपद पाया. ' सार--- आ उपरथी कोई पण माणसे आपणने दु.ख दीg होय अगर आपणी चोरी करी होय के बीजी कोई रीते मन दुखाव्यु होय तो नेमचद सुनीनी पेठे धीरजथी ते खमी रहे, कारण के तेथीज मोक्ष सुखनी प्राप्ती थाय छे ए नकी समजवु. तत्काळ बुध्दि उपर रीछ अने मनुष्यनी कथा, कोई एक वटेमा ने वनमा जता एक रीछ मज्यो. रोंछे आवीने पटे माणुने पकडी पाडयो, त्यारे तेणे रोंछना बे कान पकड्या. तेथी
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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