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________________ ( १०७ ) पुरुषो विक रहीतने पशु माने छे. (१९१ ) विवेकी पुरुप आ मनुष्य भवना क्षणने पण लाखेणो ( लक्ष मुल्य अथवा अमुल्य ) लेखे छे. (१९२ ) जेम राजहंस पक्षी क्षीर नीरने जुदा करीने क्षीर मात्र ग्रहे छे, तेम विवेकी पुरुष दोष मात्रने तजी गुण मात्रने ग्रहण करछे. (२९३ ) मननी क्षुद्रता (पारका छिद्र जोवानी बुद्धि )मटवा-- थीज गुण ग्राहकता आवे छे. गुण गुणिनो योग्य आदरसत्कार करवारुप विनयगुणथी गुण ग्राहकता वधती जाय छे. (१९४ ) विनय सर्व गुणोतुं वशीकरण छे.भक्ति या वाह्यसेवा, हृदय प्रेम या बहुमान, सद्गुणनी स्तुति, अवगुणने ढांकवा अने. अवज्ञा, आशातना, हेलना. निंदा, के खिसाथी दूर रहेवू एवा विनयना मुख्य पाच प्रकार छे. ( १९५ ) जेम अणधोयेला मेला वस्त्र उपर मल चडी शकतो नथी, अथवा विषम भुमिमां चित्र उठी शकतुं नथी, तम विनयादि गुण हीनने सत्य धर्मनी प्राप्ती थई शकती नथी. ___(१९६) विनयादि सद्गुण सपन्नने सहेजे धर्मनी प्राप्ती थइ शके छे.. (१९७) विनयादि शून्यने विद्यादिक उलटी अनर्थकारी थाय छे. माटे प्रथम विनयादिकनोज अभ्याप्त करवो योग्य छे. ( १९८ ) धर्मनी योग्यता-पात्रता प्राप्त करवी ए प्रथम अवश्यनुं छे. तृण थकी गायने दुध थाय छे अने दुध थकी सपने झेर थाय छे, ए उपरथीज पात्रापात्रानो विवेक धारयो प्रगट समजाय छे. (१९९ ) धर्मनी योग्यता मेळववा माटे नीचेना २१ गुणोनो खूब अभ्यास करयो खास जरूरनो छे. १ अक्षुद्रता-गंभीरता-गुणग्राहकता, २ साम्यता- प्रसन्नता. ३ निरोगता-अंग सौष्टव-सुंदराकृति. ४ जनप्रियता-लोकप्रियता.५ अ __ .
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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