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________________ [ ५९ ] दोहा ता कारन कीनो अलप ग्रन्थ जु मो मति मानि । सज्जन सुनि सुध कीजीयउ, जहाँ घट मात्रा जानि ॥७॥ अंचल गछपति श्री भमर, सागर सूरि सुजान । ताके पछि पाचक रतन, शेखर इमि अभिधान ॥७९॥ तिन कीनी भाषा सरस, पढ़त होत बहु मान । . प्रथम लेख सुंदर लिख्यौ, विबुध कपूर सग्यान ॥८॥ रवि शशि मंडल मेरु महि, जो लौं हुभ आकाश । पढे सौ तौ लं, थिर रहै, लीला लछि विलास ॥४१॥ इति श्री वाचक रत्नशेखर विरचिते रत्नव्यवहारसारे श्रीमच्छीशंकरदास प्रिये मणिव्यवहारो नामाष्टमो वर्ग:॥ ८॥ इति रत्न परीक्षा ग्रन्थ संपूर्णमिदं ॥ प्रतिपरिचय-(१) पत्र ३२ । पंक्ति १३ । अक्षर २५ से ४५ तक । साइज ११४५। (अभय जैन ग्रन्थालय) (२) अन्यप्रति-(वृहद ज्ञान भंडार) विशेष-वर्गनाम व पद्यसंख्या-१ वन पद्य १०५, मौक्तिक १२९, माणिक्य ९०, नीलमणि ४३, मरकत मणि ३३, उपरल ४७, नानोरत्न १८, माणिक्य ८१, प्रारंभिक १४ । कुल पद्य संख्या ५७० । (६) रत्न परीक्षा । पद्य ७० । रामचन्द्र । आदि प्रथमहि सुमर गनेश को, जात बाधे बुद्ध । ता पीछे रचना रचौ, रतन परिच्छा सुध ॥ १॥ रत्न दीपका ग्रन्थ में, रतन परिच्छा जानि । रामचन्द्र सौ समझि के, भाषा करनो आनि ॥२॥ अंत सवैया मधुकर परीक्षा-निसा मुख ससी बुध गाइहू को काचौं लेह, ताके बिच मनिह को मेल्हि निसो ठानिये । भा (नु उ) दे देखत ही दुद्ध लाल रंग होत, • तातै जानों सत्रुन सौं जुद्ध जीत जानिये ।
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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