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________________ [ ५४ । (२०) सत श्लोकी भाषा टीका । चैनसुख जती। सं० १८२० भाद्रपद कृष्णा १२ शनिवार । आदि-प्रति अभी पास मे न होने से नहीं दिया जा सकता। अंत-संवत अठारे वीस के, मास भाद्रपद जाण । कृष्णपक्ष तिथ द्वादशी, वार शनिश्चर मान ।। १ ।। टीका करी सुधारि के, चैनसुख कविराय । आज्ञा पाय महेस की, रतनचन्द के भाय ॥ २ ॥ लेखनकाल–१९ वीं शताब्दी । विशेष-टीका गद्य में है। (यति विष्णुदयालजी, फतहपुर ) (२१) हरि प्रकाशआदिअथ हरि प्रकाशाभिधस्य वैद्यक ग्रन्थस्य व्रजभाषा प्रसादि शोधन मारण विधान । रस उपरस, विष उपविपहि, सबै धातु उपधातु । कहौ रतन, उपरतन औ, शोधनीक जे घात ।। १ ।। अंत भल्ला तरु पुरु राम बहि, पंच लौंण अय क्षार । सोधण कहें निघंट मैं, गुण मारण नहिं धार ॥११॥ कही रसादिक विधि सवै ... ......... । प्रति-पत्र ९ । पंक्ति १२ । अक्षर ४५ । साइज १०४७ अंगु ल (श्री जिनचारित्र सूरि संग्रह )
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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