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________________ [ ३७ ] विशेष-साहित्य महोदधि का यह खंड कवि वंश वर्णन और प्रतापगढ़ राज वंश वर्णन के रूप मे है। (कविराज सुखदानजी के संग्रह में) (३१ ) संयोग द्वात्रिंशिका । पद्य । ३७. मान, । सं० १७३१ चैत्र शुक्ला ६. भादिअथ संयोग द्वात्रिशिका लिख्यते बुद्धि वचन वरदायिनी, सिद्धि करन सुभ काम । सारद सों माननि सखर, हिय की पूरे होम ॥ १ ॥ राग सुभाषित रमन रस, तिहुन में ओ गूढ । जो जोगीसर जंगली, न लहै तिनको मूढ ॥ २ ॥ अंत - आदि सुराग सुभाषित सुंदर, रूप अगूढ सरूप छत्तीसी । पच संयोग कहे तदनंतर, प्रीति की रीति बखान तितीसी । संवत चंद्र' समुद्र शिवाक्ष, शशी' युति वास विचार इतीसी । चैत सिता सु छहि गिरापति, मान रची सुसंयोग छ (?)त्तीसी ॥२ । दोहा अमर चंद मुनि आग्रहै, समर भट्ट सरसत्ति । संगम बत्तीसी रची, भाछी आनि उकत्ति ॥ ७३ ।। इति श्री मन्मान कवि विरचितायां संयोग द्वात्रिंशिकायां नायका नायक परस्पर संयोग नाम चतुर्थोन्मादः ॥ ४ ॥ इति संगम वत्तीसी संपूर्णम् । लेखन-लिखितं वा० कुशलभक्ति गणिना पं० हर्षचंद्र सहितेन पंचभदरा मध्ये सं०१८२८ रा माह वदि २ बुधौ लिखित अति हर्षेन पं० हरनाथ वाचनार्थ लिखिता। प्रति-पत्र ५ (अभय जैन ग्रन्थालय)
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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