SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १२ ] (५) माला पिंगल । पद्य १५३ । नानसार । सं० १८७६, फा० सु०९ । आदि श्री अरिहंत सु सिद्ध पद, आचारज उवझाय । सरव लोक के साधु कुं, प्रणमूं श्री गुरुपाय ॥ १ ॥ प्राकृत ते भाषा करूं, सालापिंगल नाम । सुर्खे बोध बालक लहै, परसम को नहि काम ।। २ ।। अंत जंवूदी मेरु सस, भवर न को उतुंग । स्युं शरीर मय गछ सकल, खरतर गच्छ ठतमंग ।। १४७ ।। गीर्वाग् वाणी सारदा, मुख ते भई प्रगट्ट । यात खरतर गच्छ में, विद्या को आर्भट्ट ।। १५८ ॥ ताकै शिखा समान विभु, श्री जिनलाभ सुरीस। ज्ञानसार भाषा रची, रत्नराज गणि सीस ।। १४९ ।। चौपाई संवत काय फिर भय देय । प्रवचनमा ८ सिधसिल' लेय । फागुण नवमी उजल पक्ष । कीनौ रक्षण लक्ष विपक्ष ।। १५० ॥ रुपदीप ते बावन किए । वृतरत्न ते केते लिए । चिन्तामणि ते केई देख । रचना बीनी कवि मति पेख ।। १५१ ।। नहि प्रस्तार न कर उद्दिष्ट, मेरू मटी न कियौ नष्ट । आधुनकालो पंडित लोक, ग्रंथ कठिन लखि देहै धोक ॥ १५३ ।। दोहा हक्सो अठ नो सेर के, वृत्ति किए मतिमंद । यात या भाखियो, नामें माला छंद ।। १५२ ॥ इति श्री माला पिगल छंद संपूर्णम् । लेखनकाल–१९ वी शताब्दी। प्रति-पत्र १३ । पंनि १३ । अक्षर २७ से ३२ । साइज ९||४|| विगेप-प्रस्नुन छंद-ग्रन्थ मे ११० छंदा का वर्णन है । इसकी दो अपूर्ण प्रतियां भो हमारे संग्रह में हैं। (अभय जैन ग्रन्थालय)
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy