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________________ [ ११ ] (३) छन्दो हृदयप्रकाश । मुरलीधर । सं० १७२३ कार्तिक शु० १५ । आदि श्री विनती सुकोमिलि जो, लिखीकै गन भेद धरा भरिकै । छन्द भुजंगप्रयात बखानि, गो मत्त महोदधि को तरिके । नह उदिनि मेरु पताकनि, मक्कटि जालनि की धरिकै । भूषण सोई जगै जग में, फुनि पिगलु मगल को करिके ॥ १ ॥ अंत-- गहवर गुन पंडित कवि मडित रामकृष्ण कश्शप कुल पूषन । रामेसर ता तनय सुकवि जा जहिन निरखेड नेकु दूपन । मुरलीधरु तासुअनु सुपंचम देवीसिंघ कियउ कवि भूषन । 'छन्दोहृदयप्रकासु' रचउ तिन जगमगातु जिमि मीहरू मयखन ।। ८ ।। समत सत्तरह सय वर्ष तेईस कातिक मास । पूनिव को पूरन भयो, छन्दो हृदय प्रकास ।। इति श्री पौलम्त्यवंशवारिजविकासनमार्तण्डगढादुर्गाधिराज्यलक्ष्मीरक्षणविचक्षणदोर्दण्ड चतुःषष्टिकलाविलासिनी भुजंगमहावीराधिवीर राजाधिराज श्री महाराज हृदयनारायणदेव प्रोत्साहित त्रिपाठी रामेश्वरात्मज मुरलीधर कवि भूषण विरचित छन्दो हृदयप्रकाशे गद्यविवरणनाम त्रयोदशोऽध्यायः ॥ १२ ॥ लेखन--लिखितमिदं पुस्तकं त्रिपाठी संभुनाथेन सं० १७३० माघ सुदी ११ हरिधवलपुर ग्रामे समाप्त। प्रति-पत्र ४७ । पंक्ति १२ । अक्षर ३२ । साइज़ ९।४५॥ (अनूप संस्कृत पुस्तकालय) (४) प्रस्तार प्रभाकर । पद्य ८९ । रसपुञ्ज । स० १८७१ चैत्र कृष्णा ५ गुरुवार । आदि दोहा क्षासोहं यह मत पुरा, प्रभु से हुती सुहार । हर लोजो दाकार तिन, गोपी अम्बर हार ।। भंत संमत ससि' मुनि वसु मही', चन कृष्ण पछ सार । पंचमी गुरु पूरण भयो, प्रभाकर सु प्रस्तार ।। प्रति-गुटकाकार। (कविराज सुखदानजी चारण के संग्रह में)
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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