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________________ [ २ ] (२) अनेकार्थ नाममाला । पद्य १६९ । विनयसागर । सं० १७०२ कार्तिक पूर्णिमा, गुरुवार । मादिदूहो धन दीरघ ३, लघु ४२ अक्षर ४५ सदय हृदय गुन गन भरन, भभरन ऋषभ जिनंद । भव भय दुह दुहग हरहि, सुखवर करन दिनंद ॥ १ ॥ x अनेकारथ अनेक विधि, प्रबल बुद्धि प्रकाश । शास्त्र समूह सोधि कई, विरचित विनय विलास ॥ ४ ॥ अंत. धर्म पाटि कल्यान गुर, अंचलगण सिणगार । विनयसागर इयूं वदे, भनेकार्थ अधिकार ।।१८।। सतरसहि बिडोतरे, कार्तिक मास निधान । पूनमि दिन गुरुवासरे, पूरण एहि प्रधान ॥ १९ ॥ इति श्री विनयसागरोपाध्याय विरचितायां दूहा बद्धानेकार्थनाममालायां तृतीयाधिकार संपूर्णः। लेखनकाल–१८ वीं शताब्दी । प्रति-पत्र १२ । पंक्ति ११ । अक्षर ३५ । (प्रति-भंडारकर रिसर्च इन्स्टीट्यट पूना, प्रतिलिपि अभय जैन ग्रन्थालय) (३) अनेकार्थी । पद्य ६० । सागर मादिसारंग सन्द नाम कमल कुरंग मराल ससि, पावस कुसुमअनंग। चातिक केहर दीप पिक, हेम राग सारंग ॥ १ ॥ अंत पिता सुपुत्र हित ग्यांन मन, रति कोतक हित काम । रसना पट-रस म्वाद हित, पंच सुनो रस नाम ॥ ६० ॥ इति अनेकार्थी मागर कृत । लेग्वन काल-२९ वीं शताब्दी। प्रति-गुटकाकार वडा साइज । (अनुप संस्कृत पुस्तकालय)
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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