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________________ राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की रकोज (द्वितीय भाग) (क) कोष-ग्रन्थ (१) अनेकार्थ नाममाला । पद्य १२० । रचयिता-महासिह । रचनासंवत १७६० भादिप्रारंभ का एक पत्र खो जाने से ७॥ पद्य नहीं हैं । ९ वाँ पद्य इस प्रकार है अग्नि धनंजय कहते कवि, पवन धनंजय माहि । भर्जुन बहुर्यो धनंजय, कृष्ण सारथी जाहि ॥ ९ ॥ अंत-- जो इह भनेकार्य को, पढे सुने नर कोइ । ताके अनेका अर्थ इह, पुनि परमारथ होइ । मो मनु निसु दिनु तुम वसो, सदा भिखारीदास । महासिंह तुम जीय जीयत, मो मन क्रो निवास ॥ २० ॥ लेखन-सं० १७६० ज्येष्ठ मासे कृष्णपक्षे १२ शनौ। पातसाहि श्री मनिविनोदात् अवरंगजेब राज्ये लि० पांडे महासिह । अमर आदि कोस जु धन, तिनि कोस तु इहां लीन । महासिंह कवि यों भनें, अनेकार्थ यह कीन ॥ प्रति-गुटकाकार पत्र १४ । पंक्ति १४-१५ । प्रति पंक्ति अक्षर १२-१६ । साइज ५||४८1-1 (अभय जैन ग्रन्थालय)
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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