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________________ [ १५५ ] (८) जीवविचार टब्बा (९) योगबावनी (१०) शिक्षाछत्तीसी (६४) मान (द्वितीय) (३७,३९,४०)-ये खरतरगच्छीय सुमति मेरु भ्रातृ विनयमेरु के शिष्य थे । कविविनोद और कविप्रमोद में इन्होंने अपने को बीकानेरवासी लिखा है। सं० १७४५ वैसाख सुदी ५ लाहोर में कविविनोद और सं० १७४६ कार्तिक सुदि २ में कविप्रमोद ग्रन्थ बनाया । संयोगद्वात्रिंशिका भी संभवतः इन्हीं की रचना है जिसका निर्माण अमरचन्द्र मुनि के आग्रह से सं० १७३१ के चैत सुदि ६ को हुआ था। (६५) माल (देव) (८५)-ये भटनेर की बड़गच्छीय शाखा के आचार्य भावदेवसूरि के शिष्य थे। आप अच्छे कवि थे । आपकी रचनाओ की सूची नीचे दी जारही है: (१) पुरन्दर चौपाइ (२) भोज-प्रबन्ध (पंचपुरी में रचित) (३) अंजणासुन्दरी चौपाइ (४) विक्रम पंचदंड कथा (५) देवदत्त चौपाइ (६) पद्मरथ चौपाई (७) सूरिसुन्दरी चौपाइ (८) वीरांगद चौपाइ (९) मालदेव शिक्षा चौपाई (१०) स्थूलिभद्र फाग-धमाल (११) राजल नेमि धमाल (१२) शील बत्तीसी (१३) कल्पान्तर वाच्य सं० १६१४ (१४) वीरपंचकल्याणक स्तवन आदि मिश्र बन्धु विनोद के पृ० ३९१ मे इनकी पुरन्दर चौपाई का उल्लेख है और उनका रचनाकाल १६५२ लिखा गया है पर वास्तव में वह संवत् प्रतियों का लेखनकाल है । इनका समय सं० १६१४ के लगभग है। (६६) मुरलीधर (११)-ये त्रिपाठी रामेश्वर के पुत्र थे। इन्होंने पोलस्त्यवंशी मार्तण्डगढ़ के महाराजा हृदयनारायणदेव के प्रोत्साहन से सं० १७२३ कार्तिक वदी १५ को "छन्दोहृदयप्रकाश' ग्रन्थ बनाया । (६७) मेघ ( १२१)-ये उतराधगच्छ के मुनि जटमल शिष्य परमानन्द शिष्य सदानन्द शिष्य नरायण शिष्य नरोत्तम शिष्य मयाराम के शिष्य थे। सं० १८१७ कार्तिक सुदि ३ गुरुवार को चौधरी चाहड़मल के समय मे पंजाब प्रान्त के फगवाड़े स्थान में वर्षोविज्ञानसम्बन्धी “मेघमाला ग्रन्थ बनाया। कई वष पूर्व हमने इस प्रन्थ का
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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