SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [१४०] पं० चतुरहर्प लिखितं श्री बीकानेर मध्ये चतुम्मासी स्थितेन । श्रीरस्तु। म० श्री जोरावरसिहजी। प्रति-पत्र ८१ । पंक्ति १६ । अक्षर ५२ । साइल ४०४ १॥ (दानसागरभंडार) (४) (केशवदास कृत ) शिखनख की भाषा टीका । संवत् १७६२ से पूर्व । भादिअथ शिख नख वर्णन लिख्यते । काव्य । गीर्वाण वाणी पु विशेष बुद्धिः तथापि भाषा रस लोलुपोहं । यथा सुराणाममृतेषु सस्सु स्वर्गाङ्गनामधरासघे रुचिः ।। अर्थ केसवदास कहै छै जे माहरी मति संस्कृत वाणी,नै विषै बुद्धि । विशेष छै तो पिण हुँ भाषा रस ने विषै लोलपी छु ते केहमी परै जिम देवतां ने देव लोक माहे अमृत थकां पिण देवांगना ना अधर ना रस नी वांछा करै अधर रसनी घणी इच्छा तिमपिण संस्कृत भाषा जाणु हु तो पिण व्रज भाषा नी वांछा घणी हैं मुझनें। अथ छूटा केश वर्णन सवैया ॥ अन्त कमला जे लक्ष्मी तेहनुं स्थानक जाणीने के आणीय कामना जे पांच वाण तेहना जे जोतिवंत फल कहती भालोइ छै ते शोभै छै कै हूं जाणुं माहरे जाण पणे सुंदर सुंदरीना नखज छै। २८ । इति श्री केशवदास विरचित शिख नख संपूर्णः । श्रीरस्तु । लेखन काल-संवत १७६२ वर्षे मिगसर सुदि ८ भौमे लिखितं श्री भुज मध्ये पं० भागचंद मुनिना । श्री। प्रति गुटकाकार । पत्र ८ । पंक्ति ३३ । अक्षर २२ । साइज ४।४६ (अभय जैन ग्रन्थालय)
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy