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[१३४ ] यथा-श्री महादेव पारवतीरो सिरोधो लिख्यते
"महादेव पारवती नै सुणावै छै अथ वारता है सो कहत हुँ । हंस रूपी देह में है सो तोतुं कहुं छू तूं सुण सीख ज्यु कालरूपी होय ज्युं । हेपारवती ए गुप्त वारता है गुज्य वारता है तंत सार है सो तो ने कहुं छु । प्रति-इस प्रति के ५ पत्र हैं, अन्त के पत्र प्राप्त न होने से अपूर्ण है।
(अभय जैन-प्रन्थालय)