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________________ [ १२१ ] तन भुवनै सरज करें, नर कुरूप बहु केस विनै रहित क्रोधी सहज, सार विन्त सविवेस ॥२॥ अंत एसे बारह भुवन पर ज्योतिस सास्त्र विचार । फल नवगृह को वर्ण क्यो सार बुद्धि अनुसार ॥१॥ इति नवग्नह फलं लेखन काल-१९ वीं शती । १८ वी शती की कई प्रतियां भी संग्रह मे है । प्रति-(१) पत्र ३ । पंक्ति १५ । अक्षर ४८ से ५२ । साइज १०४४॥ (२) पत्र ५ । पंक्ति ११ । अक्षर ३० । साइज १०४४। (३) पत्र २ । पंक्ति १८ । अक्षर ४८ । साइज ९४४ (४) पत्र ४ । पंक्ति १५ से १८ । अक्षर ३६ से ४० । साइज ९llx४| (५) पत्र ३ । पंक्ति १६ । अक्षर ४० । साइज ९x४।। अपूर्ण । (६) तीन प्रतियो के फुटकर पत्र ३। सं० १८३८ आसू वद । लिहिमता लूणसर । (अभय जैन ग्रन्थालय) (८) मेघमाल मेघ । सं० १८ १७ कार्तिक शुक्ला ३ गुरुवार । फगवाड़ा। - भादि परम पुरुष घट-घट रम्यौ ज्योति रूप भगवान । सकल रिद्ध सुख दैन प्रभु, नमति मेघ घर ध्यान ||१|| ज्योतिक ग्रन्थ समुद्र है, जांकी ले इक विन्दु । मेघमाल मेघे रची, प्रगटे जिय जग चन्दु ।।८।। मेघ विचार प्रथम ए थाई, जैसे वक्कै कही बनाई। काल सुकाल तणी यहि बात, गुरु किरपा कर कह्यो विख्यात ।।३।। दटपटा छन्द श्री जटुमल मुनिसजी सब साधन राना, परमानन्द सुसीस है ग्रन्थ विगुनि साजा । रिव्य भयो सदानन्द तिसत उपमा भारी, चौदा विद्या युक सोई आज्ञा गुरु कारी ॥१॥ चौपाई ताहि शिष्य नारायण नाम, गुण सोभा को दीसे ठाम । तांको शिष्य भयो नरोत्तम, विनयवंत आज्ञा नभगोत्तम ॥ १६॥
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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