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________________ अन्त- सुण हो पृच्छक यः फाल युं कहत है तुझे साहिब चिताथी छुड़ावैगा सर्व सिद्ध होइगी अच्छा फक है तेरा काम होइगा खुदाइ का हुकम है फतै होइगी || १५ | इति तुरकी सकुनावली संपूर्ण । लेखन काल - १९ वीं शती, पाली मध्ये ॥ प्रति - पत्र २ । पंक्ति ९ । अक्षर २४ । साइज ८|| ४ | (६) पासा केवली - [ १२० ] आदि पत्र खो गया है NXXCO ( आभय जैन ग्रंथालय ) अन्त जिस कारज की चिंता तू वार वार करता है सो कारज दर हाल सिद्ध होगा किसी थांनक सु लाभ कै वासतै अपणा पुत्र भेजता है अथवा तू जाणौ की करता है सो दर हाल लाभ सेती आवैगा । जो तेरी गई वसत होइगी सो भी आवेगी, एक दिन में अथवा दो दिन में तेरे हाथ कछु लख भी आवैगा ॥१॥ इति पासा केवली समाप्त ॥ १॥ दूसरी प्रति में पाठ भिन्न प्रकार का है यथा सुनि हो पृछक इस पासे का नाम विलक्षण है जा चित्त में वाता चीतवत हो सो सफल होइगी । पुत्र धरती सौं प्राप्ति होगा, राजा के घर सौं तथा किसी बड़ी जागा सौ प्राप्त हुवैगा । इति पासा केवली सम्पूर्णम् ॥ लेखन–संवत् १८३२ रा मिति आसू वदी ८ दिनै लेखि विक्रम मध्यै । प्रति - ( नं० १ ) पत्र २ से ७ । पंक्ति ४ । अक्षर ३५ | साइज ७॥ ४४ ॥ ( नं० २ ) पत्र २ से ७ । पंक्ति १२ । अक्षर ४२ । साइज १०x४ ( अभय जैन ग्रन्थालय ) (७) बारह भुवन (९ ग्रह ) विचार । सार (?) । आदि स्यु विचार ज्योतिष को, कहत न आवै पार । भव फल बारह भवन के, वरणत है कवि सार ॥ १ ॥
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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