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________________ [१०६ ] ज' सिद्ध दीसा धणी गोला सुजस गढ सूर । धानेरा गढ सम श्रण जैथी जालिम नूर ।। ४ ।। सकल लोक सेवा करे, प्रवन विहार पठाण । रीधू विराजे राज ऋद्ध, दिली पत दीबाण ॥ ५। कलश छप्पय कवित्त सुणता मंगल माल देव कुशल गुरु घाँछित दाता । चुगली चोर मचूर सदा सुख आपै साता । चन्द्र गच्छ सिरचंद गुरु जिणहर्ष सूरीसर गाजे। प्रतपी द्रूप जिम पुर भव्या सब दालिद्र भाज। १२० ।। पुण्य सुजस कीधो प्रगट, जिहा सिद्ध अंबा माता धणी कवि देवहर्ष मुख थी कहे, दीय सुजस लीला धणी ।। १ ।। (प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय ) (१४) नागौर वर्णन गजल । ८३ पद्य । मनरूप । सं० १८६२ । आदि मरु धर देश है मोटा क, अनधन का जु नहीं तोटा क । जिस में शहर के तै जोर, निपट ही अधिक है नागोर ॥ १ ॥ महीपति मानसिंह महाराज, सबही भूप का सिरताज । खग वल प्रबल अरियण खेस, डंड ही भरै दसही देस ।। २ ॥ अंत: गुम है अधिक करो कुन गाय, पंडित पढे पार न पाय । मविजन सुण रीझे भूप महिमा कही कवि मनरूप ॥ ८२ ॥ कवित्त गजल सुणौ जे गुणी भली तिनके मन भावै सुणे राव राजान, उमंग तिनके चित्त आवै । पंडित सुणे प्रवीण हरख उपजे हिय उल्हस । अवर सुणं नर नार, बड़े चित्त माया पिलसै । नग रतन सहर नागौर है कहो कीरत केती करों। कूड नहीं जाण तिलमात कथ,निरख दाद देश्यो नरा ।। ८३ ।। (प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय)
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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