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________________ [ १०२ ] (६) गिरनार गजल । यति कल्याण । सं० १८३८ माह वदि २ । भादि दोहा घर दे मात वागेसरी, गजल कहुं गुण खाण । जबर जंग है जीण गढ, वाचा तास चखाण ॥ १ ॥ महवत खान महीपति, रघु विराजै राज गय थट्ट हय थट्ट गाजता, सब ही सारै साज ॥ २ ॥ सकल लोक आगे खड़ा, वाबी के दरवार ।। सत विराजै अमर छच, दिन दिन दे देकार ।। ३ ।। ॥ गजल । दिन दिन होत है देकार, गिरवर गाजते गिरनार दामोदर कुंड है सुख दाय, करतां स्नान पातक जाय ॥१॥ देवल ऊच है धज दंड, नीचे खूब खेती कुंड । भवेसर नाथ सचू देव, सारत लोक जाकी सेव ॥१॥ असी नारियां अलेख, उपमा कही ऐसी देख । संवत अढार अदतीसैक, महा वदि बीज के दिवसैक ।। ५१ ॥ कीनी यात्रा गढ गिरनार, कहताग जल अति सुखकार। घर के अखर भेज सौधार, गड पुरण गिरनार ॥ ५३ ।। खरतर जती है सुप्रमाण, कवि यु कहत है कल्याण (प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय ) (७) गिरनार जूनागढ वर्णन । मनरूप विजय । आदि- घर भबहि सोरठ चखान, रीझै जु सुनहि सब राव रान । गिरनार जिहां तीरथ गजेन्द्र, वंदै जु सूरहि इंद्राणी इंद्र ।। १ ॥ अंत जूनोगढ जग येष्ट, श्रेष्ट वानी तिहां सोहै । दल सम्बल दईवान, मन्त्र जन देखत मोहै ।। श्रावक जिहां सुखकार पार जिनका कुन पावै । धरम करत धनवंत, गुणह षढ़ बड़े जु गावै ।
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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