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________________ । ९१ ] ज्ञान दीप कवि नान कहि, कीने हित चित लाइ । सीखजु ग्रंथन में हुती, कथो सकल सुखदाइ । भंत संवत सोलह से जु छयासी, जान कवी यह बुधि परकासी । तिथि बारस बदिहिं बैसाख, दस दिन मांहि सुनाई भास्त्र ।। बुधि परवान सुनाई गाइ, खोर दूर करि लेहु बनाइ ।। सिधि निधि घर में बहु भई, भाप सम्हारे काम । राज कियौ तेसठ बरस, सुख रस सों बहराम ।। सुख रस सौ बहराम, जाम आठों बीतत है । रूम चीन अरू मारली, बहु विष बादी रिधि । आप संभारे ते भई, घर में यों नौ निध सिधि ॥१॥ इति श्री कवि जान कृत ज्ञानदीप संपूर्ण । लेखन-काल-संवत् १८९२ मिति चैत्र सुदि १३ दिने लिखितं प्रतिरियं लक्ष्मीचंद पतिना नवहर मध्य चिरं सखतसिध पठनार्थ न करे। प्रति-(१) पत्र २३ । पंक्ति १५ । अक्षर २४०। (जिन चरित्र सूरिज्ञान भंडार ) (२) पत्र १६। (जयचन्द्रजी भंडार)
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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