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प्रन्थ उत्पत कथन राध श्री जसवन्त, तासु सुभगां भन्तेघर कला सिन्धु करणोत, नाम तिहि सरस कुंवरि घर ।। ३२ ।। विक्रम रवि सुत भ्रात, दिव्य पुस्तक लिख दीनी । ता पर कवि गणपत्य, वित्ति सद्मति सु चिन्ही ॥ ३३ ॥ ग्रज पध्यति भाषा विमल, भापे छंद घर ठकित की। विविध मांति सेटण व्यथा, कथा कथी सनी चरित्र की ।। ३४ ॥
छप्पय सांगावत जसवन्त, भवन भन्तेवर भारिय । राजावस कुल रूप, भोप ईसरदा पारिय ।। अमरि कुंवरि गुण अवधि, प्रेम मति भगति परायण | सत गुरु गणपति दास, पास से भरज सुभायण ।। भांबेर नाथ भरधंग घर, कुंदण बाई बत कही। ता ऊपरि सनि चरित की, भूरि कथा सुंदर भई ॥ ३५ ।।
दूहा
संघत अष्टादस जु सत छावीसा घरसानि । घसंत पंचमी पार वुध, पूरण ग्रंथ प्रमाण ॥ ३९ ॥
कवित्त संमत सत नव दून, घरस छावीस पखानं । बुधि सुदि माल घसंत पंचमि तिथि परमानं । मेदपाट घर मांहि नम्र वागोर नघे निधि । मंदिर भी गिरिधरन रीति कुल बल्लभ की विधि गुजरा गौर सुग निति दुज, सुरतांन देव सुत सुरत की कवि गणपति लीला कथी, कथा सुभग सनि चरित्र की ।। ३७ ।।
दूहा भमर नगर घर उदयपुर भटल कृपा इगलिंग । पति हिन्दू चित्रकोटि पति राण तपे भसिंघ ॥ १८ ॥
कवित्त . श्रवण सुनि हि सनि चरित, प्रेम धारिय निज पाणी को । पढहि कण्ठ निति पाठ, सरन दुख हरहि सदन को । नृप दारथ कृति तवन बहुरि विक्रम घर दायक । धीर विदुश चिति धरहि दिध्य रिधि सिधि के दायक ।।