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________________ [ ७३ ] इति श्री दूतका ढढणी के प्रसंग कुतवदीन सहिजादै की वात संपूर्ण । लेखन काल-१९ वीं शताब्दी। प्रति-गुटकाकार । पत्र २४ से ३० । पंक्ति ३२। अक्षर २४ । साईज ६।४८ (अभयजैन ग्रन्थालय) विशेष-१०७ पद्य दोहे-सोरठे हैं, बाकी गद्य है, इस वार्ता की प्रचीन प्रति १७ वीं शताब्दी की भी उपलब्ध है, पर उसका पाठ इससे भिन्न प्रकार का है। (४) चंद हंस कथा। टीकम। सं० १७०८ जेठ बदि ८ रवि । भादिअथ चन्द्रदंश कथा लिखिते । दोहा , ऊंकार अपार गुण, सबही आर भादि । सिधि होय याकुं जुपे, भक्षर एह अनादि ॥ १ ॥ जिण बांणी मुख उचरै, ऊं सबद सरुप । पिंटित होये मति बीसरो, अखि (क्ष)र एह भनूप ।। २ ।। अंत ऐसी जुगति खैचीयो भार, जाणे साकुं सम संसार । संपत माठ सतरा सै वर्ष, करत चोपइ हुमा हरिष ॥ ४३८ ।। पंडित होय हसो मति कोय, बुरा भला अखिर जो होय । जेठ मास अर पखि अधियार, जाणो दोइज अर रविवार ।। ४३९ ।। टीकम तणी वीनती एह, लघु दीरघ संवारि जु लैह । सुणत कथा होय जु पासि, हुं तिनका चरणां कु दास । ४४० ॥ मन धरि कथा एहै जो कहै, चंद्रहश जेम सुख लहै । रोग विजोग न व्यापै कोय, मन धीर कथा सुणे जो कोय ।। ४४१ ।। इति श्री चंद्रहंश कथा संपूर्ण । लेखनकाल–लिखितं रिषि केसाजी पापड़दा मध्ये संवत् १७६३ वर्ष मास काति वदि ११ सौमवार दिने कल्याणमस्तु । प्रति-पत्र ३१ । पंक्ति १४ । अक्षर २५ । साइज ८४६।। विशेष-भाषा राजस्थानी मिश्रित है। रचना साधारण है। . (अभय जैन ग्रन्थालय ) (५) जम्बूचरित्र । चेतनविजय (ऋद्धिविजय शिष्य ) । सं० २८५२ श्रावण सुदी ३ रविवार । अजीमगंज ।
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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