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________________ [ ७२ ] रवि ससि उडिन अफास सब पल मै करै प्रकास । देत हुलास उदास कौं पुजवन आस निरास ॥ २ ॥ नाम महंम्मद लीजियें, तन मन है आनंद । पूर्जे मन की इच्छ सब, दूर होंहि दुख दंद ॥ ३ ॥ अवहि बखानों जांनि काई, सुलप कथा चितु लाहि । पढत न हारै रसन जिह लिखत न कर अरसाइ॥ ४ ॥ अन्त जौं लौं मोहन मोहनी जीये इह संसार । एक अंग संगही रहे रंचक घटयो न प्यार ॥२११ ॥ सोरह से चोरानवे ही अगहन सुद चार । पहर तीन में यह कथा, कीनी जान विचार ॥१२२॥ इति कथामोहनी कवि जान कृत संपूर्ण । लेखन काल-सं० १६३० वि०। प्रति-गुटकाकार पत्र ८ । पंक्ति १८ । अक्षर १७ । साईज ६४९।।। इस प्रति में कवि जान कृत सतवंती ( १६७८) भी है। (अनूप संस्कृत पुस्तकालय) (३) कुतवदीन साहिजादैरी वारताआदि___ अथ कुतवदीन साहिजादैरी वारता लिख्यते । वडा एक पातिस्याह । जिसका नाम सवल स्याह । गढ मांडव थांणा । जिसके साहिजादा दाना । मौजे दरियावतीर। जिसकै सहर मैं वसै दान समंद फकीर । जिसकी औरत का नाम मौजम खातू । सदावरत का नेम चलातू । जो ही फकीर आवै । तिसकुं खांणा खुलावै। एक रोज इक दीवान फकीर आया । दावल दान घरां न पाया। अन्त बेटे वाप विसराया, भाई वीसारेह । सूरा पुरा गल्लडी मांगण चीतारेह ॥१०॥ वात असा कुतबदीन साहिजादा दिल्ली वीच पिरोसाह पातस्याह का साहजादा भया दांवलदान फकोर की लड़की साहिवा से आसिक रह्या बहुत दिनां प्रीत लगी। दुख पीड आपदा सहु भागी। पीरोसाहि का तखत पाया साहजादा साह कहाया । यह सिफत कुतवदीन साहिजादे की पढे बहुत ही वजत सुख सै व यह वात गाह जुग से रहि । ढढणी ने जोड कर कही।
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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