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________________ [ 11 राजा के सामने पहुचकर विनम्रतापूर्वक अपने द्वारा कही जाने वाली कथा को सुनने का आग्रह करता है। उसकी यह कथा हेमचन्द्र के कुमारपाल के सम्पर्क में आने के पहले के जीवन की कथा है । परन्तु यह घटना ऐतिहासिक नही प्रतीत होती । हो सकता है कुमारपाल प्रतिबोधकार ने अपनी रचना को कवितापूर्ण बनाने के लिए इस प्रसग की उद्भावना की हो । पूणतल्लगच्छ' जिससे कि हेमचन्द्र का सम्बन्ध था तक की कथा बताने के वाद मत्री वाहड आगे की कथा कहता है - 'एक समय देवाचन्द्राचार्य तीर्थयात्रा हेतु अणहिलपट्टन से घधूका गाव पहुचे और वहा मौढवशियो के वसही जैन मन्दिर मे देवदर्शन के लिये पधारे । धार्मिक उपदेशो की समाप्ति के बाद उनके पास एक आठ वर्ष का बालक आया और उसने देवचन्द्राचार्य से प्रार्थना की कि इस ससार-सागर के सतरण हेतु मुझे सुचरित रूपी नाव प्रदान कीजिये । अर्थात् मुझे भी साधु बनने की प्रेरणा दीजिये । देवचद्राचार्य बालक की चपलता और उसकी वैराग्यवृत्ति से बहुत अधिक प्रभावित हुए। उन्होने बच्चे का और उसके पिता का नाम पूछा। इस पर साथ आये हये बच्चे के मामा नेमि ने बच्चे के बारे मे बताना प्रारम्भ किया “यहा (घधूका मे) चाचा (चाचिग) नाम का प्रसिद्ध व्यापारी रहता है । अपने पूर्वजो के धर्म और अपने कुल देवतानो का उपासक है। 'चाहिणी' नाम की उसकी पत्नी है जो मेरी बहिन भी है । यह लडका उसी का पुत्र है । इसके बाद नेमि चाहिणी द्वारा देखे गये स्वप्न का विवरण देते हुए बालक को उसी सत्स्वप्न का परिणाम बताता है। आगे नेमि कहता है-इन दिनो धर्म की बातो के अतिरिक्त बालक का मन और किसी बात मे नही लगता । इस पर गुरु देवचन्द्र बोले - 'यदि बालक को उचित दीक्षा दी जाये तो बहुत अच्छा होगा । हम उसे ले जाकर सभी शास्त्रो के धर्म का ज्ञान कराते हैं । यह तीर्थङ्करो के समान लोक कल्याण करेगा। अत तुम इसके पिता चाचा (चाचिग) से कहो कि वे इसकी नियमित दीक्षा की प्राज्ञा दें। पिता ने अत्यधिक प्रेम के कारण पुत्र को दीक्षा लेकर घर छोड़ने की प्राज्ञा नही दी परन्तु लडके ने साधु बनने का निश्चय कर लिया था। मामा के द्वारा प्रोत्साहन मिलने पर उसने घर छोड दिया । अपने के गुरु के साथ वह खम्भतीर्थ (स्कम्भतीर्थ, खम्भात) आया और वहा जैनधर्मानुकूल जीवन प्रारम्भ करने की दीक्षा 1 आचार्य हेमचन्द्र की माता पाहिणीया चाहिणी देवी ने एक अद्भुत स्वप्न देखा था । बालक चङ्गदेव उसी स्वप्न का परिणाम था । इसके आगे की कथा वाहड मनी बताता है। कु प्र. बो. पृ. 21 2
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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