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________________ [ 5 क्रीडा, घरेल वस्तुओं, सामाजिक उत्सवो एव खेलों से सम्बन्धित शब्दो का उल्लेख किया गया है । इस वर्ग के शब्दो के माध्यम से जो सास्कृतिक चित्र बनता है, वह प्राय युग-युगो से चली आयी निम्नवर्गीय सस्कृति का चित्र है। स्पष्ट रूप से इसे किसी युग विशेष के समाज से नही सदभित किया जा सकता । (2) धामिक आचार-विचार एव देवी-देवता-देशीनाममाला मे अनेको ऐसे शब्द है जो युग-युगो से चले आये धार्मिक प्राचार-विचारो, देवी-देवीतायो एव अधविश्वासो से सम्बन्धित है, इन्ही शब्दो का विवरणात्मक अध्ययन करने का प्रयास किया गया है। (3) साहित्य-कला-इसके अन्तर्गत विविध ज्ञान-विज्ञान एव कला से सम्बधित शब्दावली का उल्लेख किया गया है। (4) ग्रामीण कृषक जीवन से सम्बन्धित शब्दावली- देशीनाममाला के अधिकाश शब्द ग्रामीण कृपक जीवन से सम्बन्धित है, इन सभी का उल्लेख स्पष्ट रूप से किया गया है। (5) राजनीति – इस सन्दर्भ मे राजनीति और शासन व्यवस्था से सम्बन्धित शब्दो का विवरण दिया गया है। ऐसे शब्दो के माध्यम से जिस शासन व्यवस्था का चित्र सामने आता है वह प्राचीन भारतीय शासन व्यवस्था है । इसका सबध 11 वी और 12 वी सदी के गुजरात से भी जोडा जा सकता है। अन्त मे इस अध्ययन का निष्कर्ष यह दिया गया है कि देशीनाममाला के ये शब्द किसी एक युग विशेष की सस्कृति से सम्बद्ध न होकर, युगयुगो से चली आयी ग्रामीण निम्नवर्गीय सस्कृति से सम्बद्ध हैं । अध्याय 5-इस अध्याय से देशीनाममाला के अध्ययन का दूसरा पक्ष प्रारम होता है । यह अध्याय 'देशी' शब्दो के सैद्धान्तिक विवेचन से सम्बन्धित हैं। सबसे पहले 'देशी' शब्दो के स्वरूप को लेकर विभिन्न विद्वानो द्वारा व्यक्त किये गये मतो का उल्लेख किया गया है । निष्कर्ष रूप मे-सभी विद्वानो ने किसी न किसी रूप मे 'देशी' शब्दो को युग युगो से चली आयी जन-भाषाओ की सम्पत्ति स्वीकार किया हैं । ये ही जनभाषाए प्राकृत (प्राथमिक प्राकृत या लोक भाषाए) नाम से भी अभिहित की जा सकती हैं । देशी शब्दो और प्राकृतो की निकटस्थ स्थिति पर विचार करने की दृष्टि से प्राकृत और देशी शब्दो के सम्बन्ध पर विस्तार से विचार किया गया है । इसी सदर्भ मे, प्राकृत को छान्दस (वैदिक) भाषा के मूल मे स्वीकार किया गया है । प्राकृत का तात्पर्य यहा प्रकृत (स्वाभाविक रूप से उदभूत होने वाली जनभाषा से है । इसके बाद अपम्र श और देशी शब्दो के सम्बन्ध पर विचार कर, यह निष्कर्ष निकाला गया है कि देशी शब्द सामान्य जनभापा और लोकव्यवहार से सम्बन्धित हैं । जो भाषाए लोक जीवन से प्रेरणा लेकर आगे बढी, उनमे तो 'देशी' शब्दो की भरमार है-जैसे - प्राकृत और अपम्र श-इसके विपरीत सस्कृत जैसी परिष्कृत साहित्यिक भाषा मे लोक अभिरुचि को प्रश्रय न मिलने के कारण 'देशी' शब्दो का व्यवहार विल्कुल है ही नही, जो है भी, उसे परिष्कृत कर लिया गया है। देशीशब्दो के स्वरूप का स्पष्टीकरण कर देने के बाद इन शब्दो को लेकर प्राचार्य हेमचन्द्र के पूर्व के प्राचार्यों स्वय हेमचन्द्र तथा उनके बाद के प्राचार्यों या भाषा वैज्ञानिको का अभिमत प्रदर्शित किया गया है । निष्कर्ष रूप मे सभी ने देशी
SR No.010722
Book TitleDeshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivmurti Sharma
PublisherDevnagar Prakashan
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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