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________________ ६४] प्राचार्यश्री तुलसी अभिमन्दन प्रग्य [ प्रथम मुधार करते है और जो उनके सम्पर्क में आ जायें, तो कभी-कभी प्रभावित होकर उनका भी सुधार हो जाता है; परन्त एक नेता तो सुधार का मिशन लेकर चलता है। प्राचार्यश्री तुलसी के पीछे साढ़े छ: सौ संत और साध्वियों हैं और लाखों मनुष्य भी । इन साढे छः सौ महाव्रतियों को नियंत्रित रखना कोई साधारण काम नहीं। नेता की दृष्टि में तो वह सच्चा और पूर्ण नेता है जो सबकी कमजोरियों को भी, जो होती ही हैं, निबाह देता है। प्राचार्यश्री तुलसी को भी कई ऐसी कठिनाइयाँ पेश ग्राती रहनी है, जैसे महात्मा गांधी को पाश्रम में पेश पाती थीं। इसके विशेष वर्णन की आवश्यकता नहीं, केवल संकेत करना ही काफी है। परन्तु प्राचार्यश्री तुलसी में नेतृत्व का इतना बड़ा जोहर है कि मैंने उन्हें कभी प्रशान्त नहीं देखा। यह एक नेता का सबसे बड़ा गुण है और यह एक संत नेता में ही हो सकता है। इस समय प्राचार्यश्री तुलसी एक तो तेरापंथ सम्प्रदाय के प्राचार्य हैं और दूसरे अणुव्रत-आन्दोलन के नेता । तेरापंथी सम्प्रदाय तो एक धार्मिक सम्प्रदाय है; परन्तु अणुव्रत-आन्दोलन एक नैतिक आन्दोलन है, जिसमें जैन ही नहीं, बल्कि न जाने कितने मुझ-जैसे अजनी भी सम्मिलित हैं। यह कोई छिपी हुई बात नहीं कि जो लोग केवल जैनियों को प्रणवतों का अधिकारी मानते हैं या अणव्रत को केवल इसी रूप में मानते हैं कि वह महावती के लिए प्राथमिक साधन है, वे प्राचार्यश्री तुलसी के अणुव्रत-आन्दोलन का विरोध भी करते हैं; परन्तु प्राचार्यश्री तुलसी ने न तो अपने स्तर से उतर कर कभी इन विरोधियों को उत्तर दिया है और न कभी उनमे प्रभावित होकर अपने प्रान्दोलन के काम को रोका है। यह भी एक सच्चे नेता की ही बात है। विरोध की एक लम्बी कहानी प्राचार्यश्री तुलसी के विरोध में क्या-क्या किया गया, क्या-क्या कहा गया, क्या-क्या लिखा गया, यह भी एक लम्बी कहानी है। कलकत्ते में सन् १९५६ के अधिवेशन में भी मुझे निमन्त्रित किया गया था। वहाँ मैंने भी इन विरोधो का कुछ रूप देखा । मैं कभी-कभी प्रावेश में भी पाया, परन्तु प्राचार्यश्री मुस्कराते ही रहे । ये संत माइक्रोफोन पर नहीं बोलते, इसलिए बड़ी सभानों में उनकी आवाज पहुंचने में अवश्य ही कठिनाई होती है; परन्त आचार्यश्री तुलसी की अावाज बहन तेज है । मैंने देखा कि कलकने में उनके बोलते समय जोर-जोर से पटाखे छोड़े गए, ताकि सभा के काम में खलबली मचे; परन्त प्राचार्यश्री न केवल स्वयं शान्त रहे, बल्कि उनमें इतना प्रभाव था कि उन्होंने सारे समूह को शान्त रखा। उम ममह में मुझ-जैसे लोग भी थे, जो जल्दी आवेश में आ जाते हैं। परन्तु यह उनका प्रभाव और आकर्षण था कि कोई प्रावेश में नहीं पाया। उन्होंने अपने व्याख्यान में भी कहा कि जो मेरे भाई मेरे विरोधी हैं, वे मुझे अवसर दं कि वे मुझे समझा दें या मैं उनको ममझाएं। इतने बड़े महान् नेता के लिए यह बात कहना उसकी महानता का परिचायक है। मैंने प्राचार्यश्री से जब-जब बातें की हैं तो मैंने यह देखा कि विरोधियों के प्रति उनमें जरा भी रोष नहीं। संसार के अन्य महान व्यक्तियों की तरह वे विरोधियों को निपटाते तो हैं, परन्तु न उन्हें कोई हानि पहुँचाना चाहते हैं और न उनके स्तर पर उतर कर कोई जवाब देना चाहते हैं, यह बहुत बड़ी बात है। जीवन में स्याद्वाद दुसरी महानता जो मैंने प्राचार्यश्री में देखी, वह यह कि स्यावाद को उन्होंने अपने जीवन में पूर्ण रूप से ग्रहण कर लिया है। उनके दर्शकों में हिन्दू, मुसलमान, ईसाई सभी वर्गों के और मभी जातियों के लोग होते हैं। यह भी स्पष्ट है कि जैन-धर्म जितना अहिंसा पर जोर देता है, अन्य सभी धर्म उतना जोर नहीं देते, परन्तु प्राचार्यश्री यह देख लेते है कि मेरे साथ कोई कितना चल सकता है और उसमे उतनी ही पाशा करते हैं। इससे संगठन में बहुत सहायता मिलती है। इन दिनों प्राचार्यश्री ने 'नया मोड़' प्रान्दोलन चलाया है। समाज-सुधार का काम वैसे ही बड़ा कठिन है, परन्त मारवाडी समाज जितना पिछड़ा हमा है, उसमें यह काम और भी कठिन है । पद के विरोध में, दहेज के विरोध में, म्याहशादियों में अधिक धन खर्च करने और दिखावा करने के विरोध में, विधवाओं के तिरस्कार करने के विरोध में प्राचार्यश्री मे एक पिछड़े हुए समाज में जिस प्रकार पानाज उठाई, उसमे कुछ लोग असंतुष्ट भी हैं। प्राचार्यश्री में ऐसे हरिजनों के
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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