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धवल समारोह : परिकल्पना और परिसमापन
विक्रम संवत् २०१६ का वर्ष मेरे लिए ऐतिहासिक मंस्मरण छोड़ गया। वर्ष की यादि में प्राचार्य भिक्षु स्मतिग्रन्थ की रूपरेखा और कार्य दिशा के निर्धारण मे अपने-अापको लगाकर महामहिम ग्राचार्यथी भिक्ष को एक विनम्र श्रद्धाञ्जलि दे पाया और वर्ष के अन्त में प्राचार्यश्री तुलमी अभिनन्दन ग्रन्थ के यायोजन में अपने-आपको लगाकर कृतकृत्य हुआ।
इस वर्ष प्राचार्यप्रवर का नातुर्माम कलकत्ता में था। श्री शुभकरणजी दसाणी ने अकस्मात इस ओर ध्यान प्राकृष्ट किया कि दो वर्ष बाद प्राचार्यवर को प्राचार्य-पद के पच्चीस वर्ष पूर्ण हो जाते है। इस उपलक्ष में हमे सिलवर. जुबली' मनानी चाहिए । सिलवर जुबली का नाम सुनकर मैं गहमा चौका । मन कहा---यह तो बीसवी सदी में अठारहवी सदी के सुझाव जैसा लगता है। उन्होंने कहा-मिलवर जबली को भी हमे बीसवी मदी के चिन्तन का 'पुट देकर ही नो मनाना है। बस यही प्राथमिक वार्तालाप समग्र धवल समारोह की भूमिका बन गया। मनि महेन्द्रकुमारजी 'प्रथम' हग वार्तालाप में साथ थे ही और हम तीनों ने आदि से अन्त तक की सारी योजना उन्हीं दिनों गढ़ ली।
योजना के मुख्यतः तीन पहलू थे१. प्राचार्यप्रवर की कृतियों का सम्यक् सम्पादन हो । उनकी ऐतिहामिक यात्रामों का लेखबद्ध मकलन हो।
इसी प्रकार उनके भाषणों का प्रामाणिक सकलन व सम्पादन हो। २. प्राचार्यवर की लोकोपकारक प्रवृतियां सार्वदेशिक रूप में अभिनन्दिन हो। ३. धवल समारोह प्रशस्ति परम्परा तक ही मीमित न रहे, वह दर्शन. गस्कृति य नैतिकता का प्रेरक भी हो।
इसी ममग्र परिकल्पना को लेखबद्ध कर प्राचार्यप्रवर के सम्मुख रखा। उन्होंने तो स्थितप्रज्ञ की तरह इमे मुना और चप रहे। इससे अधिक हम उनमे अपेक्षा भी कमे रखते। सं० २०१७ का वा गपथ द्विशताब्दी का वर्ष था। प्राचार्यवर का चातुर्मास राजनगर में हुआ। द्विशताब्दी और धवन समारोह की अपेक्षायों को ध्यान में रखते हुए हमारा चातुर्मास प्राचार्यवर ने दिल्ली ही करवाया। साहित्य-मम्पादन व साहित्य-लेग्वन का कार्य क्रमशः आगे बढ़ने लगा। धवल समारोह की अन्यान्य अपेक्षाएं भी क्रमशः उभरती गई। अणुक्त समिति के तत्कालीन अध्यक्ष श्री सुगनचन्दजी यानलिया प्रभृति कुछ लोग सक्रिय रूप से समारोह की प्रवृत्तियों के साथ जुटे रहे। उस वर्ष का मर्यादा महोत्सव पामेट में हुया । उम अवसर पर समाज के प्रतिनिधियों की एक गोष्ठी हुई और धवल समारोह की रूपरेखा पर मक्न रूप में चिन्तन चला। मुनिश्री नथमलजी, मुनिश्री बुद्धमल्लजी व मैंने भी इस गोष्टी में भाग लिया। तेरापंथी महासभा के नव निर्वाचित अध्यक्ष श्री जबरमलजी भण्डारी, पूर्ववर्ती अध्यक्ष श्री नेमचन्दजी गधैया व जैन भारती के भूतपूर्व सम्पादक श्री जयचन्दलालजी कोठारी प्रादि के उत्साह और प्रात्म-विश्वास ने समारोह के कार्यक्रम को तेरापंथी महासभा का स्थायी आधार दे दिया।
दिल्ली धवल समारोह के कार्यक्रम का केन्द्र बन गई। श्री मोहनलालजो कठौतिया प्रभृति स्थानीय लोगो का विशेष सहयोग मिलना ही था। कार्यकर्ताओं का भी अनुकूल योग बैठता ही गया। दिल्ली अणुव्रत ममिति व धवल ममारोह समिति एकीभूत-सी हो गई। देखते-देखते भाद्रव शुक्ला नवमी पा गई । बीदासर में धवल समारोह का प्रथम चरण
सम्पन्न हो गया। प्रात्माराम एण्ड संस के संचालक श्री रामलाल पुरी ने 'श्रीकाल उपदेश वाटिका,' 'अग्नि-परीक्षा' यादि - पच्चीस पुस्तक प्रकाशित कर प्राचार्यवर को भेंट की। देश के अनेकानेक गणमान्य व्यक्तियों ने अपनी भावभीनी