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________________ प्रन्याय ] प्राचार्यश्री तुलसी के अनुभव चित्र [ ४६ मा चुके थे, से मिलने गए। कुछ प्रवचन किया। उपाश्रय बड़ा है। फिर सिक्कानगर पाये।" "गंगाशहर से विहार किया। दूसरे दिन नाल पहुंचे। रास्ते में नयुसर दरवाजे के बाहर लालीबाई का पाश्रम है, वहाँ गए। वह पुरुष-वेष में रहती है। भगवा पहनती है। विधवा बहिनों के चरित्र-सुधार का काम करती है। उसकी बहुत शिष्याएं हैं । वे सिर के बाल मुंडाती हैं और सफेद वस्त्र पहनती हैं। लालीबाई बोली-'प्राचार्य भाशाराम जी से हम आपके विषय में बहुत बातें सुनती हैं, पर आज आपके दर्शन हो गए। वहाँ का वातावरण अच्छा मालूम दिया।" सिद्धान्त और समझौतावादी दृष्टिकोण प्राचार्यश्री सर्व धर्म-समन्वय के समर्थक रहे हैं। साम्प्रदायिक एकता उनकी दृष्टि में असंभव या अस्वाभाविक प्रयत्न है। सिद्धान्त और समझौतावादी दृष्टिकोण उनके अभिमत में भिन्न वस्तुएं हैं। वे सम्प्रदाय-मैत्री के पोषक हैं । विचार-भेद मंत्री के अभाव में ही पलता है। सहज ही तर्क होता है, क्या विचार-भेद मैत्री में बाधक नहीं है ? प्रति-प्रश्न भी होता है, क्या जिनमें मंत्री है, उनमें कोई विचार-भेद नहीं है। अथवा जिनमें विचार-भेद नहीं है उनमें मैत्री है ही ? मैत्री का सम्बन्ध जितना सद्व्यवहार और हृदय की स्वच्छता से है, उतना विचारों की एकता से नहीं है। अपने-अपने सिद्धान्तों को मान्य करते हुए भी सब सम्प्रदाय मित्र बन सकते हैं । जो विचारों से हमारे साथ नहीं है, वह हमारा विरोधी ही है-ऐमा मानना अपने हृदय की अपवित्रता का चिह्न है। दो विरोधी विचारों का सहावस्थान या सह-अस्तित्व सर्वथा सम्भव है। इसी धारणा की नीति पर प्राचार्यश्री ने वि० सं० २०११ बम्बई में सम्प्रदाय-मैत्री के पांच व्रत प्रस्तुत किए : १. मण्डनात्मक नीति बरती जाये। अपनी मान्यता का प्रतिपादन किया जाये। दूसरों पर लिखित या मौखिक प्राक्षेप न किया जाये। २. दूसरों के विचारों के प्रति सहिष्णुता रखी जाये। ३. दूसरे संप्रदाय और उसके अनुयायियो के प्रति घृणा व तिरस्कार की भावना का प्रचार न किया जाये। ४. कोई मंप्रदाय-परिवर्तन करे तो उसके साथ मामाजिक बहिष्कार ग्रादि प्रवांछनीय व्यवहार न किया जाये। ५. धर्म के मौलिक तथ्य-अहिमा, सत्य, प्रचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को जीवन-व्यापी बनाने का सामूहिक प्रयत्न किया जाये। उन दिनों के प्राचार्यश्री के मनोमन्थन के चित्र ये हैं: "इस वर्ष स्थानकवासी साधनों का सम्मेलन भीनासर में होने वाला है। सुना है, वे थली की अोर भी जायंगे। मैंने अपने श्रावकों से कहा है कि यदि वे वहां प्राय तो उनके साथ किमी प्रकार का दुर्व्यवहार न हो, इसका पूरा ध्यान रखा जाये।" "अाज जयप्रकाशनारायण मे मिलन हुआ। एक घंटे तक बातचीत हुई । विचारों का मादान-प्रदान हुआ। अहिंमक दृष्टियों का समन्वय हो, यह मैंने सुझाया । वातावरण बड़ा मौहार्दपूर्ण रहा।"" "जयप्रकाशजी प्राज तीन बजे फिर पाये। उनमे जीवनदानी बनने का इतिहास मुना,बड़ा स्फूर्तिदायी था। फिर उन्होंने पूछा-"अहिंसक शक्तियों का मिलन हो, इस बारे में आपके क्या मुझाव हैं ? मैंने कहा विचारों का प्रादानप्रदान हो, परस्पर एक-दूसरे को बल दे, कठिनाइयों के प्रतिकार के लिए सह-प्रयत्न हो और सामान्य नीति का निर्धारण हो।" उन्होंने कहा--"मैं यह विचार विनोबा के पास रखेंगा और मापसे भी समय-समय पर सम्पर्क बनाये रखंगा।"५ १ वि० सं० २०११ भाद्रव कृष्णा ११, बम्बई २ वि० सं० २०१० द्वितीय वैसाख कृष्णा १, नाल ३ वि० सं० २०११ मगसर कृष्णा १, बम्बई-चर्चगेट ४ वि० सं० २०११ मगसर कृष्णा ३, बम्बई-चर्चगेट ५ वि० सं० २०११मगसर कृष्णा ५, बम्बई-चर्चगेट
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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