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________________ तेजोमय पारदर्शी व्यक्तित्व श्री केदारनाथ चटजों सम्पादक-माडर्न रिष्य, कलकत्ता प्रथम सम्पर्क का सुयोग बीस वर्ष पूर्व सन् १९४१ के पतझड़ की बात है । एक मित्र ने मुझे सुझाया कि मैं अपनी पूजा की छुट्टियाँ बीकानेर गज्य में उनके घर पर बिताऊँ । इसमे कुछ पहले मैं अस्वस्थ था और मुझे कहा गया कि बीकानेर की उत्तम जल-वायु से मेरा स्वास्थ्य सुधर जायेगा। कुछ मित्रों ने यह भी मुझाया कि ग्रिटिश भारत की सेनाओं के लिए देश के उम भाग में गरूटों की भरनी का जो ग्रान्दोलन चल रहा है, उमके बारे में मैं कुछ तथ्य मंग्रह कर मकंगा। किन्तु यह नो दुमरी कहानी है। मैंने अपने मित्र का निमन्त्रण स्वीकार कर लिया और कुछ समय पटना में ठहरने और गजगृह, नालन्दा नथा पावापुरी की यात्रा करने के बाद मैं बीकानेर राज्य के भादग नामक कस्बे में पहुंच गया। बीकानेर की यात्रा एक से अधिक अर्थ में लाभदायक मिड हुई । निस्मन्देह सबसे सुखद अनुभव यह हुआ कि जैन स्वताम्बर तेरापंथ-मम्प्रदाय के प्रधान प्राचार्यश्री तुलमी में गंयोगवश भट करने का अवसर मिल गया। कुछ मित्र भादग आए और उन्होंने कहा कि बीकानेर के मध्यवर्ती करव राजलदेसर में कुछ ही दिनों में दीक्षा-यमारोह होने वाला है। उसमें मम्मिलित होने के लिए ग्राप पाने का कष्ट कर । कुछ नये दीक्षार्थी नेरापंथ माधु-समाज में प्रविष्ट होने वाले थे और प्राचार्यश्री तुलमी उनको दीक्षा देने वाले थे। मेरे प्रातिश्रय ने मुझसे यह निमन्त्रण स्वीकार करने का अनुरोध किया, कारण ऐमा अवसर चित् ही मिलता है और मुझ जैन धर्म के संयम-प्रधान पहल ना गहराई में अध्ययन करने का मौका मिल जाएगा। इमी सम्भावना को ध्यान में रख कर मैं अपने प्रातिधेय के भतीजे और एक अन्य मित्र के साथ राजलदेसर के लिए रवाना हमा। यह किमी दर्शनीय स्थान का यात्रा-वर्णन नहीं है और न ही यह माधारण पाठक के मन-बहलाव के लिए लिखा जा रहा है; एमलिए दीक्षा-ममारोह के अवसर पर मैने जो कुछ देखा-मुना, उसका अलंकारिक वर्णन नहीं करूंगा और न ही उस ममारोह का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करूंगा। मैंने दीक्षा की प्रतिज्ञा लेने के एक दिन पहले दीक्षाथियो को भड़कीली वेश-भूषा में देखा। उनके चेहरों पर प्रसन्नता खेल रही थी। उनमे मे अधिकांश युवा थे और उनमे स्त्री और पुरुष दोनों ही थे। मुझे यह विशेप रूप में जानने को मिला कि उन्होंने अपनी वास्तविक इच्छा मे साधु और माध्वी बनने का निश्चय किया है। वे ऐसे माघ-ममाज में प्रविष्ट होगे, जिसमें सांसारिक पदार्थों का पूर्णतया त्याग और ग्रात्म-मयम करना पड़ता है। मुझे यह भी ज्ञात हुआ कि न केवल दीक्षार्थी के संकल्प की दीर्घ ममय तक परीक्षा ली जाती है, बल्कि उसके माता-पिता व संरक्षकों की लिखित अनुमति भी प्रावश्यक समझी जाती है। इसके बाद मैने व्यक्तिगत रूप से इस बात की जांच की है और इसकी पुष्टि हुई है। जहाँ तक इस माधु-समाज का सम्बन्ध है, मुझे उनकी सत्यता पर पूरा विश्वास हो गया है। मेरे सामने सीधा और ज्वलन्त प्रश्न यह था कि वह कौन-सी शक्ति है, जो इस कठोर और गम्भीर दीक्षा-समारोह में पूज्य आचार्यश्री के कल्याणकारी नेत्रों के सम्मुख उपस्थित होने वाले दीक्षाथियों को इस संसार और उसके विविध भाकर्षणों, मुखों और इच्छामों का त्याग करने के लिए प्रेरित करती है?
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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