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________________ एक अमिट स्मृति श्री शिवाजी नरहरि भावे . महामहिम प्राचार्यश्री तुलसी बहुत वर्ष पहले पहली बार ही धूलिया पधारे थे। इसके पहले यहाँ उनका परिचय रहीं था। लेकिन धूलिया पधारने पर उनका सहज ही परिचय प्राप्त हुआ। वे सायंकाल से थोड़े ही पहले अपने कुछ साथी साधुनों के साथ यहाँ के गांधी तत्वज्ञान मन्दिर में पधारे। हमारे प्रामंत्रण पर उन्होंने निःसंकोच स्वीकृति दी थी। यहां का शान्त और पवित्र निवास स्थान देख कर उनको काफी संतोष हुमा । सायंकालीन प्रार्थना के बाद कुछ वार्तालाप करेंगे ऐसा उन्होंने पाश्वासन दिया था। उस मुताबिक प्रार्थना हो चुकी थी। सारी सृष्टि चन्द्रमा की राह देख रही थी। सब पोर शान्ति और समुत्सुकता छाई हुई थी। तत्त्वज्ञान मन्दिर के बरामदे में वार्तालाप प्रारम्भ हुआ। सतां सविभः संग: कथमपि हि पुण्येन भवति भवभूति की इस उक्ति का अनुभव हो रहा था। वार्तालाप का प्रमुख विषय तत्त्वज्ञान और अहिंसा ही था। बीच में एक व्यक्ति ने कहा-अहिंसा में निष्ठा रखने वाले भी कभी-कभी अनजाने विरोध के झमेले में पड़ जाते हैं। आचार्यश्री तुलसी ने कहा-"विरोध को तो हम विनोद समझ कर उसमें प्रानन्द मानते हैं। इस सिलसिले में उन्होंने एक पद्य भी गाकर बताया।श्रोताओं पर इसका बहुत अमर हुआ। मगमीनसज्जनानां तृणजलसंतोषविहिल वृत्तीना। लम्धकधीवर पिशुना निष्कारणवैरिणो जगति । सचमुच भत हरि के इस कटु अनुभव को प्राचार्यश्री तुलसी ने कितना मधुर रूप दिया । सब लोग अवाक् होकर वार्तालाप सुनते रहे। प्राचार्यश्री विशिष्ट पंथ के संचालक हैं, एक बड़े अान्दोलन के प्रवर्तक हैं, जैन शास्त्र के प्रकाण्ड पंडित हैं, किन्तु इन सब बड़ी-बड़ी उपाधियों का उनके भाषण में आभास भी किमी को प्रतीत नहीं होता था। इतनी मरलता ! इतना स्नेह ! इतनी शान्ति ! ज्ञान व तपस्या के बिना कसे प्राप्त हो सकती है? आचार्यश्री तुलमी की हमारे लिये यही अमिट स्मृति है। इस धवल समारोह के शुभ अवसर पर प्राशा रखते हैं कि हम सब इन गुणों का अनुमरण करेंगे।
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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