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________________ २२ ] प्राचार्यश्री तुलसी अभिनन्दन अन्य [प्रथम हुए भी उन्होंने अपनी माता और बड़े भाई मोहनलालजी ने जो कहा, वह किया। ऐसे एक दुःखद प्रसंग का उन्होंने अपनी डायरी में उल्लेख किया है, जबकि उनकी माँ ने उनसे पड़ोस के एक घर से छाछ मांग लाने के लिए कहा था। "मांगने में मुझे अपमान का अनुभव होता था।" प्राचार्यश्री तुलसी लिखते हैं, "लेकिन मुझे अपनी मां के आदेश का पालन करना पड़ा।" जैन दर्शन के अनुसार पूर्व जन्मों के संस्कार मनुष्य की आत्मा में रहते है, जिनके अनुसार ही मनुष्य अपने उपयुक्त कार्य का चुनाव करता है । आचार्यश्री तुलसी के लिए निश्चित ही यह बात लागू होती है, क्योंकि आध्यात्मिकता की कोई छिपी हुई शक्ति उनका मार्ग-दर्शन करती मालूम पड़ती है। यही बात उनके कुटुम्ब के कुछ अन्य व्यक्तियों के बारे में भी कही जा सकती है। उनका बहन लाडांजी साध्वी बनीं, जो कालान्तर में तेरापंथी सम्प्रदाय की सभी साध्वियों की प्रमुख हुई और उनके भाई चम्पालालजी ही नहीं, बल्कि एक भतीजे हंसराजजी भी तेरापंथी साधु बने। प्राचार्यश्री तुलसी ने जबसे होश सम्हाला, उनका सारा परिवार तेरापंथ के आठवे प्राचार्यश्री कालगणी का अनुयायी था। अपने बाल्यकाल में प्राचार्यश्री तुलसी ने अक्सर यह आकांक्षा की तो उसमें आश्चर्य की बात नहीं कि मैं भी साधु हो जाऊँ तो कितना अच्छा । अपनी माँ से वह अक्सर प्राचार्यश्री कालूगणी के बारे में पूछते रहते थे। प्राचार्यश्री कालूगणी जब कभी लाडनूं पाते, जो तेरापंथ के प्रभाव का केन्द्र था, प्राचार्यश्री तुलसी और उनके परिवार के दूसरे सभी व्यक्ति उनके दर्शनों को जाते थे। प्राचार्यश्री कालगणी के बारे में प्राचार्यश्री तुलसी ने लिखा है-"उनके मुख पर जो आध्यात्मिक तेज था, वह मेरे हृदय को आकर्षित करता था और मैं घण्टों उन्हें, उनके लम्बे कद, उनके गौर वदन, उनकी चमकती हुई आँखों की ओर निहारता रहता था । मन-ही-मन कहता-क्या किसी दिन मुझे भी ऐसा सौभाग्य प्राप्त होगा कि मैं साधु बन कर उनकी साधना में उनके साथ बैटूं।" जैन तेरापंथ में प्राचार्य ही अपने उत्तराधिकारी का चुनाव करते हैं । कालान्तर में आचार्यश्री कालगणी ने इस प्रश्न पर विचार करना प्रारम्भ किया कि उनके बाद प्राचार्य का पद किसे दिया जाये। आचार्यश्री कालगणी ने लाइन की अपनी यात्राओं में एक बार बालक तुलसी को देखा था और पहली ही नजर में बालक ने उनका हृदय छू लिया था। बालक की उनके प्रति जैसी भावना थी, उसी तरह वे भी उसकी ओर आकर्षित हुए और बालक तुलसी की चमकती हुई आँखों में देखते हुए प्राचार्यश्री कालगणी ने जान लिया कि जिस उत्तराधिकारी की वह खोज में थे उसे उन्होंने पा लिया। आचार्यश्री तुलसी जब ग्यारह वर्ष के हुए तो प्राचार्यश्री कालूगणीजी एक बार फिर लाडनूं पाये। साधु बनने के स्वप्न की पूर्ति में विलम्ब न हो, यह सोच कर आचार्यश्री तुलसी ने उनसे अपने को तेरापंथ के माधु-समुदाय में दीक्षित करने की प्रार्थना की। बड़े भाई मोहनलालजी इतनी छोटी अवस्था में संसार के सारे भौतिक सुखों और सम्पत्ति का परित्याग करने की अपने छोटे भाई की तैयारी देख कर धक्क रह गए। छोटे भाई के कानुनी संरक्षक के नाते, इसके लिए अावश्यक अनुमति देने से उन्होंने इन्कार कर दिया। प्राचार्यश्री तुलसीजी ने बार-बार ग्राग्रह किया, लेकिन मोहनलालजी भी अपनी बात पर दढ रहे। इसके कुछ दिन बाद की बात है कि प्राचार्यश्री कालगणी लाडनूं में एक विशाल समुदाय के बीच प्रवचन कर रहे थे। सबको और विशेषतः मोहनलालजी को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उस विशाल समुदाय के बीच खड़े होकर ग्यारह वर्षीय प्राचार्यश्री तुलसी ने ग्राचार्यश्री कालगणी को सम्बोधित करके कहा-"पादरणीय प्राचार्यश्री, मैं यह प्रतिज्ञा लेना चाहता हूँ कि आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करूँगा और धनोपार्जन के चक्कर में नहीं पड़ेगा।" जिसने अभी युवायस्था में भी प्रवेश नहीं किया था, मे बालक का यह साहम देख कर जन-समुदाय भौंचक्का रह गया। भाई मोहनलालजी भी ऐसे चकित हुए कि कुछ बोल न सके । स्वयं प्राचार्यश्री कालगणी भी, जो भारत के विविध भागों के व्यापक प्रवास में अनोखे-अनोखे दृश्य देख-सुन कर अब वयोवृद्ध हो चुके थे, प्राचार्यश्री तुलसी के इस प्राकस्मिक परिवर्तन को देख कर चकित रह गए। बड़े भाई की अवस्थिति में प्रतिदिन दबे-दबे रहने वाले तुलसी को आज क्या हो गया ? मोहनलालजी का भय कहाँ चला गया? यह किसी की समझ में नहीं पाया। वस्तुतः यह छोटे बालक के बजाय एक वयस्क की ही वाणी थी। लम्बी बामौली के बाद प्राचार्यश्री कालगणी ने कहा-"तुम अभी बालकही हो, ऐसी प्रतिज्ञा का पालन करना
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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