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________________ सध्या 1 श्रीका उपदेश वाटिका [ २८३ इन्हीं पंक्तियों से उन्होंने अपनी यात्रा धारम्भ की और 'मंगल द्वार' में पैर रखा। धीरे-धीरे एक-एक करके जिन चार प्रकोष्ठों में प्रवेश किया, उनका रहस्य समझाने का भी पूरा प्रयास किया है। एक 'मंगल द्वार' और चार प्रवेश के इस ग्रन्थ में अनेक सरस गीत हैं। उन गीतों में कितनी ही मन्तर कथाएं छिपी हैं। यदि वे ग्रन्थ के साथ अलग से नहीं दी जाती तो उनका पाठकों के सामने धाना एक प्रकार से कठिन ही था। ग्रन्थ के कुपाल सम्पादन ने 'श्रीकालू उपदेश वाटिका' को एक नया निखार दिया है। इसके लिए सम्पादक श्रमण श्री सागरमलजी व मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी 'प्रथम' तथा मार्ग-दर्शक मुनिश्री नगराजजी पाठकों की श्रद्धा के पात्र हैं। पुस्तक हर प्रकार से सुन्दर एवं मनन के योग्य है । मंगल द्वार में प्राराध्य की स्तुति सम्बन्धी बीस गीत हैं। कबीर की भाँति प्राचार्य तुलसी ने भी गुरु की महिमा गाई है। तेरापंथ के आठवं प्राचार्य श्रद्धेय श्रीकालुगणी उनके दीक्षा गुरु थे। प्राचार्य तुलसी उनकी महिमा से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना उन्हीं के नाम से की। वे गुरु को पुकार कर कहते हैं ग्रो म्हारा गुरुदेव ! भव-सागर पार युगाझोली, म्हारे में रम जानोजी । प्रज्ञान अबेर मिटाओ जी ॥ न्य भक्ति मार्गी संतों की भांति वे भी गुरु को परमात्मा से मिलाने का माध्यम मानते हैं। सद्गुरु के बिना मुक्ति नहीं मिल सकती, ऐसा उनका विश्वास है । तभी वे कहते भी हैं : है गुरु विष्य देव घर-घर का, पावन प्रतिनिधि परमेश्वर का गुरु गोविल गुरु ने पहली शीश नमावं । और भी कहा है एडी घिसे किसे यह चोटी, गुरु बिन गोता खाये । यही कारण है कि वे गुरु और गोविन्द दोनों के सामने खड़े रहने पर कबीर की भाँति पहले गुरु के आगे ही शीश नमन करना चाहते हैं, क्योंकि गुरु ही गोविन्द से मिलाने वाली कड़ी हैं। वीतराग का वर्णन करते समय प्राचार्य तुलसी निर्गुण उपासकों की पंक्ति में प्रकट होते हैं। मंगलद्वार में ही उन्होंने कहा है : बीतराम मिय सुमरिए, मम स्थिरता ठाण वीतराग अनुराग स्यूं भजो भाविक सुजाण, बीतराग पर पावगो, जो बारम गुणठाण ॥ इसके पश्चात् वे सती को संसार में सुखी मानकर कहते हैं : और भी समता रा सागर सन्त सुखी संसार में । निज प्रात्म उजागर सन्त सुखी संसार में ॥ यहीं से वे प्रथम प्रवेश की ओर अग्रसर हुए हैं। इसमें उन्होंने मनुष्य को अपने दुर्लभ जीवन को संवार कर रखने और बुराइयों का त्याग करने की बात कही है : चेतन प्र तो चेत, चेत चेत चौरासी में भगतो रे । भयंकर चक्कर वायो रे । अब मानव जन्म मिल्यो जागो, म्रो यौवन, धन, तन, तरुणाई
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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