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________________ २४२] पारायंभी तुलसी अभिनन्दन अन्य जाता । दूसरी बात लग्न भी उन्होंने वही बसलापा है जो प्राचार्य श्री के प्रचलित लग्नों में मध्य का है। प्राचायंवर की कन्या लग्न की कुण्डली विशेष रूप से प्रचलित थी। उससे केवल सत्रह मिनट पूर्व का लग्न इन्होंने पकड़ा है। यह लग्न मन:कल्पित था और यह रेखामों से प्रमाणित । ___ वे यथाक्रम संवत्, मास, तिथि, बार, नक्षत्र आदि बोल गये। एक-एक कर भावानुगत ग्रह भी बोल दिये । लग्न के विषय में कहा-इस जातक का जन्म असंदिग्ध रूप से सिंह लग्न में हुआ है। कुछ दिनों बाद एक अन्य रेखाशास्त्री सम्पर्क में पाये। उनके भी सामने आचार्यश्री के हाथों के बही छापे रखे गये। उन्होंने भी अपनी गगना से जो लग्न निकाला वह ठीक वही था जो दैवज्ञभूषण पं० लक्ष्मणप्रसाद त्रिपाठी ने निकाला था। इस प्रकार विवं सुबद्धं भवति की उक्ति चरितार्थ हुई। प्राचार्यवर ने यह सब सुनकर कहा-मागे ज्योतिषियों को यही लग्न बताना चाहिए। यह है प्राचार्यश्री के जन्म प्रहों के निर्णय का संक्षिप्त विवरण । प्राचार्यवर की निर्धारित जन्म कुण्डली समग्र रूप में इस प्रकार है--विक्रम संवत् १९७१ मंगलवार कार्तिक शुक्ला द्वितीय इष्ट-५२/५१ लग्न सिंह ४/२४ ३श. ११ रा. /०गु. पदमभूषण श्री सूर्यनारायण व्यास ने भी उक्त कुंडली की मान्यता देकर प्राचार्यवर के ग्रहों पर अपने लेख में विचार किया है।
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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