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________________ पाप सब हरते रहेंगे मुनिधी मोहनलालजी विश्व के इतिहास में तेरा प्रमर अभिधान होगा, विश्व के हर श्वास में तेरा चिरन्तन ज्ञान होगा। विशद तेरी साधना ही विश्व को सन्देश देगी, समन्वय की भावना शक्ति-युत आदेश देगी। सत्यशोधक दार्शनिकता उच्च पद पासीन होगी, आग्रहहीन अभिव्यक्तियां कभी नहीं प्राचीन होंगी। पदचिह्न तेरे पंथ बन दर्शन सदा करते रहेंगे, प्रस्फुटित वे शब्द तेरे पाप सब हरते रहेंगे। शुम अर्चना मनिधी बसन्तीलालजी क्षितिज के इस थाल विशाल में उदित स्वर्णिम-सूर्य सुदीप ले प्रवर-पांशु पसारित प्रक्ष से प्रकृति यों करती तव अर्चना। ललित घोलित लाल गुलाल से विग-कृजित सुन्दर गीत गा पवन डोलित चामर चार से प्रकृति यों करती शुभ अर्चना । तुम कौन ? साध्वीश्री मंजुलाजी तुम कौन? गगन के हसित चाँद ! अथवा धरती की चिनगारी! पीकर नित विष की कड़ी धूंट प्राणों का अंकुर अकुलाया साँसों का पंछी नीड़ छोड़ है तड़प रहा वह घबराया है हर मुरझा-सा प्राण तुम्हारे सुधा-सेक का प्राभारी। गीत साध्वीश्री सुमनश्रीजी नयन गवाक्षों से मानस क्यों धीमे-धीमे झांक रहा है ? शुभ्र प्रात की मधुर-मधुर स्मतियों के प्रांचल में छिप-छिप कर, चिर परिचित से इस प्रतीत औ' भावी में अनुराग बिछाकर, वर्तमान के नील गगन में, माशा के रथ हाँक रहा है। नयन गवामों से मानस क्यों धीमे-धीमे झांक रहा है?
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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