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________________ का विध करहु तव रूप बखानी भी शुभकरण साणी गिरामनवम नयन बिनुबानी। काविषकरह तबकप बसानी॥ श्री राम के अनन्य भक्त कवि श्रेष्ठ तुलसीदासजी का यह पद माज पुनः-पुनः मुझे स्मरण हो रहा है, प्रतः अनेक अनिर्वचनीय अनुभूतियों के साथ-साथ मानवता के उज्ज्वल प्रतीक आचार्यश्री तुलसी के प्रति इस शुभ अवसर पर अपने हृदय की समस्त मंगल कामनाएं, विनम्र अभिनन्दन और अट्ट श्रद्धा की प्रजलि समर्पित करता है। युग प्रवर्तक आचार्यश्री तुलसी डा० रघुवीरसहाय माथुर, एम० एस-सी, पी-एच० डी० (यू० एस०ए०) वनस्पति निदान शास्त्री, उत्तरप्रदेश सरकार, कानपुर हमारे देश में समय-समय पर ऋषि, मुनि और संतों ने चरित्र-निर्माण और आध्यात्मिक विकास को प्रबल बनाने का प्रयास किया है। इस प्रयास में जितनी सफलता भारत को मिली है, उतनी सम्भवतः अन्य किसी देश को नहीं मिली। इसीलिए हमारे देश की कुछ विभूतियां अमर है-जैसे राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर आदि, जिनको हम अवतार मानते हैं। इनके गुणगान से मनुष्य जाति के हजारों दुःख शताब्दियो से मिटते रहे है और धर्म-पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती रही है । भगवद्गीता में स्वयं भगवान कृष्ण की अमर वाणी है : यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ साक्षात् भगवान के प्रतीक इन अवतारों के अतिरिक्त संत, महात्मा तथा प्राचार्यों की भी हमारे देश में कोई कमी नहीं रही। जब-जब हमारी जनता चरित्र भ्रष्ट हुई, तब-तब कोई-न-कोई महान् सत हमारे सामने अपने विमल चरित्र का दिग्दर्शन कराता रहा । परन्तु धर्म-अधर्म तथा सात्विक एवं तामस भावनाओं का समागम सदा से रहा है और रहेगा। केवल हम में यह शक्ति होनी चाहिए कि हम अधोगति के मार्ग में गिरने से बच सके और काम, क्रोध, मद, लोभ के माया-जाल में उतना ही उलझं, जिससे प्राधुनिक प्रौद्योगिक काल के सुखों से वंचित न होकर भी आध्यात्मिक पथ मे विपथ न हो सके। इस प्रकार के भौतिक सुख-प्रधान युग में रहते हुए प्राध्यात्मिक सुख को पूर्णतः प्राप्त करने का उदाहरण हमारे समक्ष राजा जनक का है; परन्तु आज के प्रजातान्त्रिक युग में राजा जनक जैसे लोगो का होना तो सम्भव नहीं है, अतः भौतिकवाद के सुखों को भोगते हुए भी कम-से-कम आचार्यश्री तुलसी के बताये हुए अणुव्रतों का पालन तो अवश्य ही कुछ कर सकते हैं। समाज के प्रति तथा सभी धर्मानुयायियों के प्रति आचार्यश्री का कटोर तपःपूत जीवन एक जीता-जागता उदाहरण है। स्वतन्त्रता के बाद जो चरित्रहीनता आज देश में देखी जा रही है, उसके अन्धकार को मिटाने के लिए प्राचार्यश्री देदीप्यमान सूर्य के सदृश हैं। हम शत-शत कामना करें कि वे चिरायु हों और समाज में वह साहस भरें कि बताये हुए सदाचार के पथ पर वह चल सके ।
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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