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________________ शतायु हों सेठ नेमचन्द गर्षया उत्तरोत्तर वर्धमान एवं विकासशील तेरापंथ संघ के नव प्राचार्यों में से उत्तरवर्ती पाँच प्राचार्य एवं मन्त्री मुनि मादि तपोनिष्ठ चरित्रात्मानों के घनिष्ठ सम्पर्क में पाने का, याकचित् सेवा करने का एवं उनके शुद्ध, सात्विक स्नेह प्राप्त करने का जिस परिवार को अविछिन्न मानन्ददायक अवसर प्राप्त होता आ रहा है, उस परिवार का एक सदस्य नवम अधिशास्ता के धवल समारोह के अवसर पर उनके प्रति श्रद्धा सुमन भेट करे, यह उसके लिए परम पाल्हाद का विषय है। इस पच्चीस वर्ष की अवधि में तेरापंथ संघ की जी सर्वतोमुखी वृद्धि हुई है, ज्ञान, दर्शन, चारित्र व तप का जो विकास हुआ है, वह किसी से अविदित नहीं । प्राज राजस्थान में ही नहीं, भारत के प्रत्येक प्रान्त में 'तेरापंथ' का नाम सर्वविदित हो रहा है । इसके मूल में प्राचार्यश्री तुलसी है जिनको शुद्ध सनातन सिद्धान्तों पर दृढ़ निष्ठा है और जो आत्म प्रत्यय के मतिमान अवतार हैं। यह आप ही की दूरदर्शिता का फल है कि आपने धर्म को सम्प्रदाय के घेरे से ऊँचा उठाकर उसे व्यापक और बहुजन हिताय बनाया है। उसे जाति, वर्ण, लिंग निरपेक्ष बनाया है। आज न केवल तेरापंथ समाज अपितु समग्र जैन समाज धन्य है कि पाप जैसा एक महान् प्राचार्य उसे मिला है। धर्म सम्प्रदायों में एकता स्थापित करने के लिए आपके सफल प्रयास चिर स्मरणीय रहेंगे। जो इसे ग्रफीम समझते थे, वे ही अब धर्म की आवश्यकता और उपादेयता समझने लगे है। यह आप ही के कटिन प्रयास का फल है। धर्म को प्राप पुनः समाज व राष्ट्र के शिखर स्थान में स्थापित करने में समर्थ हुए हैं, यह कितने हर्ष का विषय है। आप शतायु हों, मानव को सच्चे अर्थ में मानव बनाने का प्रापका अभियान सफल हो, अणवत का विस्तार कोने-कोने में हो, देश का नैतिक धरातल शुद्ध बनाने में प्राप सफल हों, अहिंसा और संयम को माधारण व्यक्ति भी आपके मार्ग-दर्शन से जीवन में उतार पायें, यही हमारी कामना है। गुरुता पाकर तुलसी न लसे गुरुता लसी पा तुलसी की कृपा -गोपालप्रसाद व्यास
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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