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________________ २२६ प्राचार्यश्री तुलसी अभिनन्दन पन्ध मन्ठी देन है। मैतिक मान्दोलन के व्यापक प्रसार के लिए जन-सम्पर्क भी उनकी दैनिक चर्या का मुख्य मंग रहता है। इन विविधमखी धाराओं को एक रस बनाने में व इनमें संगति बिठाने में एकमात्र कारण उनका सन्तुलित व्यक्तित्व है। यशस्वी परम्परा के यशस्वी प्राचार्य तेरापंथ की प्राचार्य परम्परा बहुत यशस्वी रही है। प्राचार्यश्री ने उसमें अनेकों महत्वपूर्ण कड़ियां जोड़ी हैं। गत दो दशकों में धर्म का क्षेत्र अनेकों संक्रान्तियों से भरा हुअा रहा है। एक ओर जहाँ विज्ञान, मनोविज्ञान व पार नीतिशास्त्र ने धर्म की दार्शनिक व नैतिक पूर्वमान्यतामों पर प्रभाव डाला, वहाँ दूसरी पोर धर्म के क्षेत्र में छाई हुई अनेकों विकृत परिस्थितियों ने उसके तेज को धूमिल बना डाला। धर्म के मौलिक आधारों पर जहाँ भाचार्यश्री के संस्कार बड़े दृढ़ रहे हैं, वहां उससे सम्बन्धित विकृतियों पर उनका प्रहार भी बड़ा कठोर रहा है। उनके स्वरों में होने वाले धर्म के विश्लेषण ने बड़े-से-बड़े नास्तिकों को भी बहुत प्रभावित किया है । अपने सुव्यवस्थित साधु-समाज को देश के नैतिक पुनरुत्थान में संलग्न कर धर्माचार्यों के सम्मुख एक बहुत बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया है। हमें विश्वास है कि प्राचार्यश्री के मार्ग-दर्शन में यह धर्म-संघ प्रपनी अभीष्ट प्रगति की दिशा में अधिक-से-अधिक पल्लवित और पुष्पित होगा। सभी विरोधों से अजेय है मनिश्री मनोहरलालजी तुम अविचल बन अपनी धुन में ही चलते हो चाहे कोई उसको प्राँके या अनदेखा उसे छोड़ दे फिर भी अपने निश्चित पथ मे नहीं तनिक भी डिगते'हो तुम बाधाओं से सम्बल लेकर आगे बढ़ने का साहस यह सभी विरोधों से अजेय है सभी दृष्टियों से प्रजेय है और तुम्हारा सत्य चिरन्तन जिसके इन पावन चरणों में सिर असत्य का युग युगान्त से हार-हार कर बार-बार भुकता पाया है।
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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