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________________ २१८ ] प्राचार्य श्री तुलसो अभिनन्दन अन्य [प्रथम बातों की ओर जाना ठीक नहीं होगा, जिनका कि मार्ग पतन की ओर जाता है । अन्ततोगत्वा सभी लोग यह विचार करने पर मजबूर दिखाई देते हैं कि सबको मिल-जुलकर एक ऐसा रास्ता जरूर खोजना चाहिए, जिससे सभी का हित हो सके। समाज में इस तरह की चेतनता प्रदान करने का श्रृंय प्राचार्य तुलसी ही को दिया जा सकता है। उन्होंने बटे स्नेह के साथ उन हजारो लोगों के हृदयों पर बरबस विजय प्राप्त कर ली है। जीवन को यही विशेष रूप से सफलता है, जिसे प्राचार्य तुलसी अपनी सतत साधना से प्राप्त कर सके हैं। प्रणवत-प्रान्दोलन अब मनुष्य के जीवन की इतनी निकटता प्राप्त कर चुका है कि वह कुछ मामलों में एक सच्चे मित्र की तरह से समाज का मार्ग-दर्शन करता है। नही तो उसे दिल्ली और देश के दूसरे स्थानों में कमे बढ़ावा मिलता और क्यों विद्यार्थी, महिलाएं और दूसरे श्रमिक एवं धनिक वर्ग उसे अपनाते ? इस से यह प्रकट होता है कि आन्दोलन में कुछ-न-कुछ प्रभाव अवश्य है। बिना प्रभाव के यह अान्दोलन देशव्यापी नहीं बन सकता। सततसाधना अनेक बार प्राचार्य जी के पास बैठने पर ऐमा जान पड़ा कि वे जीवन दर्शन के कितने बड़े पण्डित है, जो केवल किमी भी ग्रान्दोलन को अपने तक ही सीमित रहने देना नहीं चाहते। अभी पिछले दिनों की बात है कि उन्होंने सुझाव दिया कि अणवत-आन्दोलन के वार्षिक अधिवेशन का मेरी उपस्थिति में होना या न होना कोई विशेष महत्त्व की बात नहीं है। इस तरह से समाज के लोगों को अपने जीवन सुधारने की दिशा में प्राचार्य जी ने बहुत बार प्रयत्न किया है। इस मम्बन्ध में उनका यह कहना कितना स्पष्ट है कि भविष्य में कोई व्यक्ति यह नहीं कहे कि यह कार्य प्राचार्य जी की प्रेरणा अथवा प्रभाव के कारण ही हो रहा है। वे चाहते है कि व्यक्तियों को किसी के साथ बँधकर आत्म-अभ्युदय का मार्ग नही खोजना चाहिए । जीवन की प्रत्येक प्रवृत्ति में प्रेरणा लेनी नाहित । जीवन जिम पोर उन्हें प्रेरणा दे, वह नाम उन्हें करना चाहिए। यह मब देख कर प्राचार्यजी को समझने में सहायता मिल सकती है। वे उन हजारों माधुओं की तरह अपने सिद्धान्तों को ही पालन कराने के लिए दुराग्रही नही है, जैगा कि बहुत से लोगों को देखा गया है, जो अपने अनुयायियों को अपने निदिष्ट मार्ग पर चलने के लिए ही विवश किया करते हैं। प्राचार्यजी के अनुयायियों में कांग्रेस, जनगध, कम्युनिस्ट, समाजवादी और यहाँ तक कि जो ईश्वरीय गना में विश्वाम नहीं करते, ऐसे भी व्यक्ति है। प्राचार्यजी मानते है कि जो लोग अपने को नास्तिक कहते है, वे वास्तव में नास्तिक नहीं हैं। इमलिए प्राचार्य जी के निकट जाने में मभी वर्गा के व्यक्तियों को पूरी छूट रहती है । यह मैं अपने अनुभव की बात कर रहा है। प्रेरक व्यक्तित्व उन्होंने आत्म-साधना से अपने जीवन को इतना प्रेरणामय बना लिया है कि उनके पास जाने में यह नहीं लगता कि यहाँ आकर समय व्यर्थ ही नष्ट हुना। जितनी देर कोई भी व्यक्ति उनके निकट बैठता है, उगे विशेष प्रेरणा मिलती है। उनकी यह एक और बड़ी विशेषता है जिसे कि मैं और कम व्यक्तियों में देख पाया हूँ। वे जिम किमी व्यक्ति को भी एक बार मिल चुके हैं, दूसरी बार मिलने पर उन्हें कभी यह कहते हए नहीं मना गया कि पाप कौन हैं ? अपने समय में मे कुछ-न-कुछ समय निकाल कर वे उन मभी व्यक्तियों को अपना शुभ परामर्श दिया करते हैं, जो उनके निकट किमी जिज्ञासा अथवा मार्ग-दर्शन की प्रेरणा लेने के लिए जाते है। अनेक ऐसे व्यक्ति भी देखे है कि जो उनके अान्दोलन में उनके साथ दिखाई दिये और बाद में वे नहीं दीख पाये । नब भी प्राचार्य जी उनके सम्बन्ध में उनकी जीवन गतिविधि का किसी-न-किसी प्रकार से स्मरण रखते है। यह उनका विराट व्यक्तित्व है, जिसकी परिधि मे बहन कम लोग पा पाते हैं। मा जीवन बनाने वाले व्यक्ति भी कम होते हैं, जो संसार में विरक्त रह कर भी प्राणी-मात्र के हित-चिन्तन के लिए कुछ-न-कुछ ममय इम काम पर लगाने है और यह गोचते है कि उनके प्रति स्नेह रखने वाले व्यक्ति अपने मार्ग में विछड तो नहीं गये है ?
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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