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________________ सौभाग्य की बात जननेता श्री जयप्रकाशनारायण हमारे लिए यह सौभाग्य की बात है कि प्राज प्राचार्य तुलसी जंसी विभूति हमारा पथ-प्रदर्शन कर रही है। वे मानवता की प्रतिष्ठापना द्वारा समता, सहिष्णुता स्थापित करना चाहते हैं तथा शोषण का अन्त चाहते हैं । भूदान और अणुवत-आन्दोलन की प्रवृत्तियाँ ऐसी हैं जो हृदय के परिवर्तन द्वारा अहिसक समाज नव-रचना में अग्रसर हो रही हैं, जिसे कायम करने के लिए रूस आदि देश प्रायः असफल ही दीख पड़ते हैं । अपने देश की निर्धनता देखने से पता चलता है कि कितना असीम दुःख समाज में व्याप्त है। निर्धनों के साथ कितना अन्याय हो रहा है। इन्हीं मन्याय एवं शोषणों के कारण ही शासित वर्ग के कुछ नवोदित नेता रक्तरंजित क्रान्ति की दुन्दुभि बजाने तथा शोषकों को धनविहीन एवं उनकी प्रवृत्तियों को समूल नष्ट कर देने के लिए लोगों का आह्वान कर रहे हैं। अणव्रत-अान्दोलन भी सर्वोदय आन्दोलन का एक सहयोगी ही है। इससे भी देश-विदेश के प्रायः सभी विचारक और नेता परिचित हो ही गए हैं। हमारे आदर्श की ओर बढ़ने के लिए प्राचार्य तुलसी ने बहुत सुन्दर प्रादर्श रखा है। विनोबाजी और तुलसीजी सभी जाति और वर्ग के लिए हैं, दोनों ही सबका भला चाहते हैं। प्राचार्य तुलसीजी से बम्बई में वार्तालाप करने पर उनके उच्च उद्देश्यों की झलक मिली। उनका कहना है कि जब सारी हिंसक शक्तियाँ एकत्रित हो सकती है, तब अहिसक शक्तियाँ भी एक हो सकती हैं और सबके सामूहिक प्रयास और प्रयत्न से अवश्य ही अहिंसक समाज की कल्पना पूरी हो सकेगी। सबको मिल कर काम करने में शीघ्र सफलता मिलेगी। सर्वप्रथम व्यक्ति-सुधार हमारे सामने यह प्रश्न अवश्य हो सकता है कि किस पद्धति के द्वारा सबका हित हो सकता है, शोषण मिट सकता है ? क्या सरकार शोषण को मिटा सकती है ? नहीं, बिल्कुल असम्भव है । यह जनता कर सकती है। मनुष्य की प्रान्तरिक शक्ति के द्वाग यह कार्य पूरा हो सकता है। संविधान द्वारा सर्वोदय असम्भव है। जैसा कि प्राचार्य तुलसी कहा करते हैं कि व्यक्ति-व्यक्ति से समाज-परिवर्तन होगा और जब तक व्यक्ति नहीं सुधरेगा, तब तक कुछ नहीं होगा। ध्यान से देखा जाये तो उनकी इस वाणी में कितना तत्त्व भरा पड़ा है। समाज का मूल व्यक्ति ही है, व्यक्ति से समुदाय, समुदाय से समाज का रूप सामने पाता है। समाज तो प्रतिबिम्ब है, जैसा मनुष्य रहेगा वैसा समाज बनेगा और फिर जैसा समाज बनता रहेगा वैसा-वैसा परिवर्तन मनुष्यों में भी आता रहेगा। अस्तु, सर्वप्रथम व्यक्ति-सुधार पर जोर देना चाहिए । आचार्य तुलसी यह भी कहते है कि सब अपनी-अपनी प्रात्म-शुद्धि करें। यह और अच्छा है । अगर सब स्वतः आत्मशुद्धि कर लें तो क्रान्ति की क्या प्रावश्यकता है ? महात्मा गांधी भी समाज-सुधार के पहले व्यक्ति-सुधार पर जोर देते रहे हैं । साम्यवादी आदि कान्तियाँ बाह्य सुधार की द्योतक हैं। किन्तु जब तक प्रान्तरिक सुधार नहीं हुमा, तब तक कुछ नहीं हुमा; बाह्य सुधार तो क्षणिक और सामयिक कहलायेगा, उसमें प्रान्तरिक सुधार के समान शाश्वतता कहाँ ? अगर हम आन्तरिक सुधार और व्यक्ति-सुधार को प्राथमिकता नहीं देंगे तो हमारा कार्य अधूरा ही रह जायेगा । रूस, अमेरिका, फ्रांस आदि देशों में आज भी असमानता, परतन्त्रता, असहिष्णुता, भातृत्वहीनता, पूंजीवादिता मादि किसीन-किसी रूप में अवश्य विद्यमान हैं । विचार-स्वातन्त्र्य की आज भी मुविधा नहीं, एक तरह से अधिनायकवाद का बोलबाला ही है। वैतनिक असमानता अस्सी गुणा है। प्रस्तु, कहने का तात्पर्य यह है कि शक्ति और हिंसा पर आधारित
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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