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________________ आधुनिक युग के ऋषि श्री सुगनचन्द सदस्य, उत्तरप्रदेश विधान परिषद् प्राधनिक युग के ऋषि प्राचार्य तुलसी प्राज वही कार्य कर रहे है जिसे प्राचीन ऋषियों ने उठाया था। प्रात्मबत सर्वभूतेष प्रौर बसव कुटम्बकम् की भावना को स्वयं जीवन में उतार कर वे सारे समाज को उसी तरफ ले जाने का प्रयत्न कर रहे हैं। भारतीय समाज ने राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर स्वामी, स्वामी दयानन्द, गांधी, विनोबा प्रादि महापुरुषों को पैदा कर जिस ऊँचाई वा परिचय दिया है, आप उसी परम्परा को अक्षण्ण कर रहे हैं। हमारा दर्शन सत्यं, शिवं, सन्दरं और सत्य, प्रेम तथा करुणा की जिम सुदृत नींव पर आधारित है, उम नीव को प्रापगे बल मिलेगा, ऐसी अाशा है। आप सादा जीवन और उच्च विचार तथा तप, त्याग, संयम की भारतीय परम्परा को समाज में उतारने के प्रयन्न में निरन्तर लगे हुए हैं। प्रणवत-पान्दोलन यह सिद्ध करता है कि जब तक व्यक्ति ऊँचा नहीं उठेगा, तब तक समाज ऊँचा नही उट सकता और व्यक्ति का निर्माण छोटी-छोटी बातों को जीवन में उतारने से ही होता है। जिनको हम छोटी वान और छोटा काम कहते है, उन्हीं कामों ने गंमार के महान पुरुषों को महान् बनाया है। राम ने शबरी के बेर खाये, कृष्ण ने झठी पत्तले उठाई, गांधीजी कानने और बुनने वाले बने, विनोबा ने भंगी का काम किया। इन्हीं छोटे कामों ने इन्हें महान बनाया। यही नहीं, इस देश में जितने भी ऊँचे साधु-संत हुए है वे भी ऐमा ही छोटा-मोटा काम करते रहे। कबीरदाम जलाहे का काम करते थे। वे कपड़े का ही ताना-बाना नहीं बुनते रहे, बल्कि जीवन का ताना-बाना भी उमी के साथ बनते रहे । उनका प्रसिद्ध भजन झीनी झीनी बीनी चदरिया मे पंच तत्त्व और शरीर-तत्त्व का कितना सुन्दर विश्लेषण किया गया है, जिसे कोई योगी ही कर सकता है। पर कबीर ने सीधी-सादी भाषा में बहुत ही मुन्दर ढंग मे दमे व्यक्त किया है। इसी तरह रैदास ने मोची का काम किया, दादूदयाल ने धोवी का और नामदेव ने दर्जी का। ये सभी संत भारत के अमल्य रत्नों में है। साध-मंतों का प्राविर्भाव समाज-संचालन के लिए मदैव होता रहा है और आगे भी होता रहेगा। सरकारें समाज को अनुशामित कर सकती हैं, पर उसे बदल नहीं मकतीं। आज नकः दुनिया की किसी मरकार ने ममाज को या सामाजिक मल्य को नहीं बदला, न उनमें बदलने की क्षमता ही है। यह काम तो साध-संत ही कर सकते हैं और अब तक करते पाए हैं तथा प्रागे भी करते रहेंगे। कानून द्वारा किसी को रोका नहीं जा मकना है, डराया जा सकता है; किसी का हृदय नहीं बदला जा सकता। प्राज के युग मे भी विज्ञान ने प्रकृति पर बहुत-कुछ विजय पा ली है, मनुष्य चन्द्रमा तक पहुँचने की तैयारी में है, पर विज्ञान स्वयं मनुष्य को बदलने में असफल रहा है । यही कारण है कि आज विज्ञान का उपयोग निर्माण के बजाय मंहारक अस्त्रों में किया जा रहा है। आज दुनिया के सामने दो ही मार्ग है, सर्वोदय या सर्वनाश। इनमें से ही किसी एक को चुनना होगा। यदि विज्ञान का सम्बन्ध अहिमा में हुआ तो इस धरा पर ऐमा स्वर्गापम सुख पायेगा जो अाज तक कभी ग्राया भी नहीं पर अगर विज्ञान का सम्बन्ध हिंसा से हुआ तो जैसा कि आज हो रहा है, इतना बड़ा विनाश भी इमी पृथ्वी पर होगा, जितना कभी हया नहीं, बल्कि मष्टि ही समाप्त न हो जाये, यह खतरा भी पैदा हो गया है।
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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