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________________ अध्याय ] मैं तो मनुष्य हूँ प्राचार्यश्री के जीवन में जहा पुण्णस्स करथई, तहा तुच्छस्स करपई, जहा तुच्छस्स कत्थई, तहा पुष्णस्स करथई यह महावीर की वाणी पूर्ण रूप से चरितार्थ होती है। वे किसी व्यक्ति को, वह छोटा या हीन है, इस दृष्टि से नहीं प्राकते, किन्तु उसकी मनुष्यता का मंकन करते हैं। उनके सामने अन्य भेद प्रतात्त्विक हैं । वे मानवता को विभक्त देखना नहीं चाहते। एक व्यक्ति ने प्रश्न किया-पाप हिन्दू है या मुसलमान । प्राचार्यश्री-भाई न तो मैं हिन्दू हूँ और न मुसलमान । क्योंकि अगर मुझे हिन्दू कहें तो मेरे सिर पर चोटी नहीं है और अगर मुसलमान कहें तो दाढ़ी नहीं है। अत: मैं तो मनुष्य हूँ और मनुष्यता का ही विकास चाहता हूँ। जन-प्रियता के तीन सूत्र - __व्यक्ति साधना का फल पाना चाहता है, क्योंकि वह उसे प्रिय है पर साधना के क्षेत्र में उतरते हुए सकचाता है, क्योंकि उसमें कुछ बलिदान करना पड़ता है, वह उसे अभिप्रेत नहीं है। प्राचार्यश्री का अटल विश्वास है कि हमें कुछ कार्य करना है तो बाधाओं को पार करते हुए भी चलना होगा। याद रहे हीरे में तभो चमक पाती है, जब वह खरसाण पर चढ़ता है। अत: आज की परिस्थितियों को देखते हुए प्राचारात्मक धर्म के साथ-साथ विचारात्मक धर्म को भी विकसित किया जाना चाहिए। हमारा है इसलिए सत्य है, यह भाग्रह व्यक्ति की बुद्धि को कुंठित कर देता है। उसमें नये-नये अन्वेषणों की प्राशा आकाश कुसुम ही सिद्ध होगी। जो व्यक्ति चिन्तन के द्वार खुले रख कर सत्य का अन्वेषण करता है, उसके सामने कठिनाइयाँ टिक नहीं सकतीं, वे स्वयं कपूर हो जाती हैं । आचार्यश्री इसी के मूर्त रूप हैं। मगर संक्षेप में कहा जाये तो आचार्यश्री की जन-प्रियता के तीन सूत्र हैं : १. प्राचार व विचारों में उच्चता। २. अनाग्रह बुद्धि। ३. दूसरों के विचारों को सहने की क्षमता। इस वर्ष उन्हें प्राचार्य पद प्राप्त किये पूरे २५ वर्ष सम्पन्न हो रहे हैं। इस बीच में उन्होंने सहस्रों व्यक्तियों का नेतृत्व किया है, लाखों व्यक्तियों को मार्ग-दर्शन दिया है व करोड़ों व्यक्तियों को अपने विचारों से लाभान्वित किया है। पाज भारत में ही नहीं, विदेशी व्यक्तियों की जबान पर भी उनका नाम है । जनता के लिए उनके चरण-चिह्न मार्ग-दर्शन का कार्य कर रहे हैं, इसलिए वे आज जन-जन के प्रिय बन गये है। 4JLad Maitam Kuwwinna RAM
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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