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________________ माचार्यश्री तुलसी अभिनन्दन अन्य [ प्रथम उनके जीवन में नित नये उन्नेष पाते रहते थे। बहधा अवकाश प्राप्त व्यक्ति बहुत दिनों तकलीफ कर अपना प्रभाव सीमित करता है। मंत्रीमुनि १० वर्ष तक जीए । वर्षों तक वे वार्धक्य और रुग्णावस्था से पूरी तरह प्रसित रहे, पर उनके जीवन की यह विलक्षण बात थी कि परिस्थितियां स्वयं बदलकर उनके लिए किसी न किसी प्रकार से श्रेय बटोर कर ले पातीं। टाला गया भी श्रेय उन्हें चतुर्गुणित होकर मिलता। इस प्रकार ये अपने जीवन के अन्तिम क्षण तक नूतन ही बने रहे। उनके जीवन का एक उल्लेखनीय आनन्द था-घोर तपस्वी मुनिश्री सुखलालजी और विद्या वारिधि मुनिश्री सोहनलालजी जैसे प्रात्म साथ मुनियों का योग । वे प्रत्यन्त मित-भाषी थे। उनके मुख से सदैव नपी-तुली बात निकलती। दूसरों को देने के लिए उनकी प्रमुख शिक्षा थी "बचन रतन मुखकोट है, होट कपाट बणाय। सम्भल-सम्भल हरफ काढ़िये, नहीं परवश पड़ जाय। यही दोहा बचपन में उन्होंने मुझे याद करवाया था। हो सकता है उनकी वाणी का संयम ही उनके लिए वासिद्धि बन गया हो। अनेकानेक लोग आज भी उनके वचन-सिद्धि की गाथा गाते हैं । सरदारशहर की घटना है । मुनिश्री नगराजजी व मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी दिल्ली की ओर विहार करा रहे थे। मंत्रीमुनि पहुंचाने के लिए कुछ दूर पधारे। वन्दन और क्षमायाचना की वेला में मंत्रीमुनि ने मुनिश्री नगराजजी के कान में कहा-“देखो, दिल्ली जानो हो, जवाहरलाल नेहरू स्यू भी बात करनी पड़े तो भी मन में संकोच नहीं राखणो। शासण री बात बताने में कोई डर नहीं।" मुनिश्री वहाँ से विहार कर गये। प्रधानमन्त्री नेहरू से मुनिजनों का तब तक कोई सम्पर्क नहीं था। कोई प्रासार भी सामने नहीं थे। उसी वर्ष प्रथम बार मुनिश्री ने प्रधानमन्त्री की ४० मिनट बातचीत हुई। मुनिश्री ने जिस निस्संकोच भाव मे अणव्रत-अान्दोलन का कार्यक्रम सामने रखा वे अत्यन्त प्रभावित हए। उन्होंने मुनिश्री से प्राचार्यश्री को दिल्ली बुलवाने का भी आमन्त्रण करवाया। अणुवत-सभा में भाग लेने की बात भी उसी समय निश्चित कर दी। यह वही वर्ष था जिस वर्ष प्राचार्यवर सरदारशहर चतुर्मास कराकर केवल ग्यारह दिनों में दिल्ली पधारे । राष्ट्रपति तथा नेहरूजी ने प्रथम बार अणुक्त आयोजनों में भाग लिया। इस प्रकार मंत्रीमनि मगनलालजी स्वामी की वासिद्धि के उदाहरणों को संजोया जाये तो एक बहुत बड़ा ग्रन्थ बन सकता है। उनकी सेवाएं तेरापंथ साधु-संघ के लिए महान थीं। कौन जानता था भेदपाट की पथरीली भूमि में जन्मा यह बालक महान् धर्म-संघ का मन्त्री बनेगा । कौन जानता था, केवल बारह पाने की विद्या पढ़ने वाला बालक इतना असाधारण, दूरदर्शी और अनुपम मेघावी होगा। पर यह कहावत भी सत्य है-"होनहार विरवान के होत नीकने पात" । जब ये पाठशाला में पढ़ते थे तो गुरु ने बुद्धि-परीक्षा की दृष्टि से सभी छात्रों से पूछा-यज्ञोपवीत की खूटी कौनसी है ? उपस्थित छात्र एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। गुरु ने इनकी ओर देखा तो उन्होंने झट से उत्तर दे डाला-यज्ञोपवीत की ग्वंटी कान है। गुरु और छात्र सभी इस उत्तर मे प्रानन्द-विभोर हए। यह है संक्षेप में युवा प्राचार्य के वृद्ध मंत्री की जीवन गाथा । . ।
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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