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________________ प्रभावशाली चारित्रिक पुनर्निर्माण डा० जवाहरलाल रोहतगी उपमंत्री, उत्तरप्रदेश सरकार हमारे देश की पुरातन परम्परा रही है कि जब कभी राष्ट्र पर कोई संकट भाया, ऋषि-मुनियों ने अपनी साधना और तपोबल को लोकोपकार की दिशा में उन्मुख किया और जन-साधारण में आत्म-विश्वास पैदा किया, जिसके फलस्वरूप दुरूह कार्य भी सरल और सुगम हो गये। यह परम्परा भाज भी किसी-न-किसी रूप में विद्यमान है । आचार्यश्री तुलसी सरीखे बिरले लोग हमारे बीच मे हैं जो न केवल राष्ट्र के नैतिक उत्थान में लगे हुए हैं, वरन् उसकी छोटी से छोटी शक्ति के यथेष्ट उपयोग की चेष्टा कर रहे हैं। साथ ही प्राचार्य प्रवर के नेतृत्व में प्रभावशाली साधु समाज जन सम्पर्क द्वारा चारित्रिक पुननिर्माण के कार्य में लगा हुआ है। सच पूछा जाये तो आज के युग में जब हम प्रार्थिक एवं सामाजिक पुनरुत्थान के लिए योजनाबद्ध कार्य कर रहे हैं, अणुव्रत जैसे प्रान्दोलन का विशेष महत्व है । इससे हमारे उद्देश्यों को पूरा करने में बड़ा सम्बल मिलता है। ( मुझे प्रसन्नता है कि प्राचार्यश्री तुलसी के सार्वजनिक सेवा काल के पच्चीस वर्ष पूरे होने के उपलक्ष में अभिनन्दन का आयोजन किया गया है। मैं आपके प्रयास की सफलता की कामना करता हूँ । तपोधन महर्षि श्री लालचन्द सेठी प्राचार्यश्री तुलसी वर्तमान प्रशान्ति के युग में शोक सन्तप्त प्रशान्त मानव को जीवन की शान्तिमय रूपरेखा के मार्गदर्शक, तपोधन एवं महर्षि के रूप में भाज भारत में विद्यमान हैं। प्राचार्य तुलसीजी ने अपूर्व साधना से न केवल अपना ही जीवन धन्य किया है, बल्कि अपने प्रभावशाली साधु-संघ को भी एक विशेष यतिविधि देकर जन-कल्याण के लिए अर्पित किया है, जो बड़ा ही श्रेयस्कर कार्य है। वह केवल जैन समाज के निमित्त ही नहीं, वरन् समस्त मानव जाति के लिए एक ध्येय के रूप में रहेगा। मेरी प्राचार्य तुलसी के प्रति घट्ट बढा है जो पावन कार्य वे कर रहे है, वह दिदिगन्त में उनके नाम को सदा अमर रखेगा । धवल समारोह मनाने के कार्यक्रम एवं अभिनन्दन ग्रन्थ की रूपरेखा का जो निर्माण हुआ है, तदर्थ हार्दिक बधाई देता हूँ और चाहता हूँ कि ये कार्य खूब ही समारोहपूर्वक सम्पन्न हों और प्राचार्यश्री तुलसीजी महाराज के तप, ज्ञान एवं सदुपदेश मानव की अशान्ति मिटाकर उन्हें शान्ति प्राप्त कराने में सहायक हों, यही मेरी हार्दिक कामना है। मेरी बहुत दिनों से इच्छा हो रही है कि झाकर महामहिम श्री तुलसीजी महाराज के दर्शन कर अपने को धन्य समझैं, किन्तु कार्याधिक्य की उलझनों के कारण यह इच्छा पूर्ण नही हो पा रही है और मन की मन में ही गोते खाती रहती है। आशा है कि यह शुभ दिन भी अवश्य ही प्राप्त होगा ।
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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