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________________ १२८ ] प्राचार्यमी तुलसी अभिनन्दन अन्य उन्होंने उत्तरप्रदेश, बिहार और बंगाल के लम्बे यात्रा-पय तय किये। भारत के प्राध्यात्मिक स्रोत प्राचार्यश्री तुलसी की ये यात्राएं चरित्र-निर्माण के क्षेत्र में अपना अभूतपूर्व स्थान रखती हैं। उनकी तलना पनेतिकता के विरुद्ध निरन्तर जारी धर्मयुद्धों से की जा सकती है। अपने शिष्यों समेत स्वयं यह महान् एवं अविराम श्रम करके प्राचार्यश्री तुलसी ने समस्त देश में शान्ति एवं कल्याण का एक ऐसा पवन प्रवाहित किया है, जिसकी शीतलता जनमानस को स्पर्श कर रही है और जो अपने में सागरं सागरोपमः की तरह अनुपम है। जो प्राध्यात्मिक सन्तोष और मात्मविश्वास की भावना इन यात्रामों के परिणामस्वरूप जनता को प्राप्त हुई, उसने समाज को चरित्र के चारु, किन्तु कठिन पथ पर चलने के लिए नवीन प्रेरणा प्रदान की है। अब तक लगभग एक करोड़ व्यक्ति अणुव्रत-आन्दोलन के सम्पर्क में आ चके हैं और एक लाख से अधिक व्यक्तियों ने उससे प्रभावित होकर बुरी आदतों का परित्याग कर दिया है। प्राचार्यश्री तुलसी सूर्य की तरह ही न केवल दिव्यांग हैं, अपितु सूर्य की तरह ही उनकी समस्त दिनचर्या है । वे भारत के प्राध्यात्मिक स्रोत हैं। उन्होंने अपने चैतन्य काल से अब तक जो कार्य किया है, उस सब पर उनके श्रान्तिहीन श्रम की छाप विद्यमान है। वह जनता-जनार्दन का एक ऐसा इतिहास है जिसकी तुलना धर्म-संस्थानों के इतिहास से की जा सकती है। इस सकाम संसार में वह निष्काम दीप की तरह जल रहा है । जीवन का एक पल भी उनका ऐसा नहीं है, जिसमें उन्होंने अपनी ज्योति का दान दूसरों को न दिया हो। वह 'चरैवेति' की तरह एक ऐसी साक्षात् प्रतिमा है जिसके सम्मुख सिर सहज ही श्रद्धा से नत हो जाता है। 3 . ZEEP S 12
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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