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________________ १२० ] प्राचार्यश्री तुलसी अभिनन्दन प्राय छिपा हुया नहीं है । साधुनों ने, जिस प्रकार आचार्य प्रवर के इस तात्त्विक अध्ययनक्रम को सफल बनाने के लिए प्राणप्रण मे चेष्टा की, उसी प्रकार साध्वी समाज ने भी दत्तचित्त होकर ज्ञान प्राप्ति में कोई कमी नहीं रखी। फलतः उनके साधु संत संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, बंगला, गुजराती, मराठी, कन्नड़, अंग्रेजी, मारवाड़ी आदि अनेकों भाषायों के प्रभावशाली पंडित बने। आचार्यश्री के साधु समाज में प्राज अनेक साधु संस्कृत व हिन्दी के माशु कवि हैं। अनेक साधु-साध्वियों कविता लिखने में सिद्धहस्त है। अनेक साधु गद्य-पद्य के लेखक हैं। उनके कुछ साधुनों ने संस्कृत, हिन्दी व प्राकृत की नवीन व्याकरणों की भी रचना की है। उदाहरणार्थ-भिक्षुशब्दानुशासनमहाव्याकरण, कालूकौमुदी,तुलसी प्रभा, तुलसी मंजरी व जय हिन्दी व्याकरण आदि । अनेक साधु तात्त्विक ग्रन्थों के लेखक य अनुशीलक बने । अनेक साधु प्रवधान विद्या के पारंगत भी बने। जिनमें कुछ शतावधानी, पंचशतावधानी, सहस्रावधानी और सार्धसहस्रावधानी भी हैं। इस प्रकार प्राचार्य प्रवर की उत्साहदायिनी प्रेरणा पाकर अनेक साधु उच्चकोटि के विद्वान् बने । पारस लोहे को कंचन बनाता है, 'पारस' नहीं, किन्तु प्राचार्यश्री अपने अनेक शिष्यों को अपने समकक्ष लाये। प्राचार्यश्री में यह एक विशेष ध्यान देने की बात है कि वे विद्याध्ययन कराने के लिए किसी के भी साथ संकीर्णता का बरताव नहीं करते। प्राचार्य प्रवर ने अपने कुछ शिष्यों को जन-सिद्धान्तों के शोधकार्य में भी जोता। वह कार्य इतनी यात्राओं के होते हुए भी सुचारु रूप से चल रहा है। जहाँ पर प्रचार, पर्यटन, जन-सम्पर्क, अध्ययन, अध्यापन आदि अनेक कार्य साथ-साथ चल रहे हों, वहाँ सब कार्यों की गति स्वभावतः ही मंद पड़ जाती है। किन्तु प्राचार्यप्रवर के वचनों में न जाने कौन-सी अद्भुत शक्ति भरी हुई है कि उनके सान्निध्य में चलने वाले अनेक कार्य उसी तीव्र गति मे चल रहे हैं। अनेक कार्यक्रमों की व्यस्तता में भी उनका एक भी शिष्य पठन-पाठन के परिश्रम से पीछे नहीं हटता।। प्राचार्यश्री के कन्धों पर संघ के गरुतर दायित्व का भार है, अतः उन्हें अन्यान्य कायों के लिए अवकाश मिल पाना आसान नहीं है, फिर भी वे व्याख्यान, प्रचार, बातचीत, चर्चा मादि अनेकानेक कार्यों में व्यस्त रहते हैं। तेरापथ सम्प्रदाय की प्रणाली के अनुसार छोटे-से-छोटे और बड़े-से-बड़े सारे कार्य उन्ही की आज्ञा के अनुसार सम्पादित होते हैं। अतः इन छोटे-मोटे कार्यों में भी उन्हें ही ध्यान बटाना पड़ता है। इस प्रकार प्रत्येक समय में ये कार्यों में 'सायन भादों' में बादलों से नीले नभ की तरह घिरे रहते हैं। सुबह चार बजे से लेकर रात को नौ बजे तक वे अत्यन्त उत्साहपूर्वक अपने एक-एक कार्य के लिए सजग रहते हैं। यहाँ तक कि वे अपने नियोजित कार्यों के लिए कभी-कभी भोजन को भी गौण कर देते हैं। चर्चा, प्रश्नोत्तर, मध्ययन, अध्यापन आदि कार्य करते समय तो वे अपने-आपको भूल से ही जाते है। चर्चा, बार्ता व प्रश्नोत्तरों के कारण रात को कभी-कभी ग्यारह व बारह बजे तक जागते रहते हैं। उधर पदिचम रात्रि में साधुनों को स्वाध्याय व पढ़ाने के लिए वे नियमित रूप से चार बजे उठते है। इस प्रकार उनकी एकनिष्ठा ने माधुसमाज को जो विद्या की एक अमोघ शक्ति दी है, वह अतुलनीय है। बिहार, बंगाल, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र आदि अनेक देशों में आचार्यश्री के अनुयायी लोग रहते हैं । वे लोग सहस्रों ही नहीं, अपितु लाखों की संख्या में हैं । वे लोग भी तात्त्विक और सद्व्यवहारिक ज्ञान से वंचित न रह जाएं, इसको दृष्टिगत रखते हुए उन्होंने उपर्युक्त प्रत्येक प्रान्त के प्रत्येक गांव व नगर में अपने साधु-साध्वीगण के दल भेज कर उन्हें भी ज्ञानार्जन करने का अवसर प्रदान किया। इस प्रकार लोगों को तात्त्विक ज्ञान की प्रवगति कराने के लिए प्राचार्यप्रवर ने एक नई दिशा दी। इसका भी एक परीक्षाक्रम निर्धारित किया गया। कलकत्ता तेरापंथी महासभा द्वारा प्रतिवर्ष इस परीक्षाक्रम में अध्ययन करने वालों की परीक्षा ली जाती है। सहस्रों बालक, बालिकाएं व तरुण इसमें अध्ययन कर अपने ज्ञानांकुर को विकसित करने में अग्रसर होते हैं। आचार्यप्रवर माचार के क्षेत्र में जितने निष्ठाशील प्राचारी, विचार के क्षेत्र में जितने निष्ठाशील विचारक, सद्व्यवहार के क्षेत्र में जितने सद्व्यवहारी और चर्चा के क्षेत्र में जितने चर्चावादी हैं, उतने ही शिक्षा क्षेत्र में एक निष्ठाशील शिक्षक भी हैं। तेरापंथ संघ में आज जो अप्रत्याशित शैक्षणिक प्रगति देख रहे हैं, उसका सारा श्रेय उसी एक उत्कट निष्ठाशील पात्मा को है, जिसने अपना प्रमूल्य समय देकर चतुर्विध संघ को प्रागे लाने का प्रयल किया है।
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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