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________________ अध्याय ] वर्तमान शताब्दी के महापुरुष दुमपतयं नामक दशम अध्ययन में भी इसी भावना को दोहराया गया है : ग्रहोण पंचिबियर पिसे लहे उत्तम धम्म सई हल्लहा। १०-१५ अर्थात् यद्यपि मनुष्य पांचों इन्द्रियों से सम्पन्न हो, किन्तु उत्तम धर्म की शिक्षा मिलना दुर्लभ होता है। इसलिए किसी व्यक्ति के लिए यह परम सौभाग्य का ही विषय हो सकता है कि उसे महान् गुरु अथवा सच्चे पथ प्रदर्शक का सम्पर्क प्राप्त हो-ऐसे गुरु का जो विश्वधर्म के सच्चे सिद्धान्तों का प्रतिपादन करता हो। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह कि जो अपने उपदेश के अनुसार स्वयं प्राचरण भी करता हो। प्राचार्यश्री तुलसी के चुम्बकीय प्राकर्षण, सच्ची श्रद्धा और उनकी उच्च और भव्य शिक्षामों का प्रभाव तत्काल ही मन पर पड़ता है। उनका दृष्टिकोण तनिक कट्टरतापूर्ण अथवा संकुचित साम्प्रदायिकता युक्त नहीं है। इसके विपरीत वे अपने चारों प्रोर उदारता, व्यापकता और विशालता का वातावरण विकीर्ण करते हैं। जब हजारों व्यक्ति ध्यान मग्न होकर उनका प्रवचन सुनते है तो कम-से-कम थोड़े समय के लिए तो वे नित्य-प्रति की चिन्तामों और भौतिक स्वार्थों के लिए होने वाले अपने नरन्तरिक संघर्षों को भूल जाते हैं और संकुचित और दकियानूसी दृष्टिकोण त्याग कर मानो किसी उच्च, भव्य और मालौकिक जगत में पहुँच जाते हैं। बुराइयों की राम बाण औषधि अणुव्रत-आन्दोलन जिसका पूज्य आचार्यश्री संचालन कर रहे हैं और जो प्रायः उनके जीवन का ध्येय ही है, वास्तव में एक महान् वरदान है और वर्तमान युग की समस्त बुराइयों की रामबाण औषधि सिद्ध होगी। दुनिया में जो व्यक्ति लोगों के जीवन और भाग्य-विधाता बने हुए हैं, यदि वे इस महान् आन्दोलन पर गम्भीरता से विचार करें तो हमारे पृथ्वी-मण्डल का मुख ही एकदम बदल जाए और दुनिया में जो परस्पर प्रात्म-नाश की उन्मन और आवेशपूर्ण प्रतिस्पर्धा चल रही है, बन्द हो जाए। तब निश्शस्त्रीकरण, प्राणविक अस्त्रों के परीक्षण को रोकने और मानव जाति के सम्पूर्ण विनाश के खतरे को टालने के लिए लम्बी-चौड़ी बेकार की बहस करने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाएगी। मनुष्य अपने को सृष्टि का मुकुट समझने में गर्व अनुभव करता है। किन्तु अकस्मात् ये उद्गार फूट पड़ते हैं, 'मनुष्य ने मनुष्य को क्या बना दिया है।' अणुव्रत-आन्दोलन वास्तव में असाम्प्रदायिक आन्दोलन है और उसको हमारी धर्म निरपेक्ष सरकार का भी समर्थन मिलना चाहिए। यदि इस आन्दोलन के मूलभूत सिद्धान्तों की नई पीढ़ी को शिक्षा दी जाए तो वे बहुत अच्छे नागरिक बन सकेंगे और वास्तव में विश्व नागरिक कहलाने के अधिकारी हो सकेंगे। राजनैतिक नेताओं की लम्बी-चौड़ी बातों के बजाय जो प्रायः कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं, इस प्रकार का आन्दोलन राष्ट्रीय एकता के ध्येय को अधिक शीघ्रतापूर्वक सिद्ध कर सकेगा। धवल समारोह समिति के आयोजकों ने पूज्य आचार्यश्री के प्रति अपनी विनम्र श्रद्धाजलि भेंट करने का जो अवसर मुझे प्रदान किया है, उसके लिए मैं अपने को गौरवान्वित और परम सौभाग्यशाली समझता हूँ। अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रबन्ध सम्पादक ने जब मुझसे प्राचार्यश्री के बारे में अपने संस्मरण लिखने का अनुरोध किया तो मैंने उसे तुरन्त सहर्ष स्वीकार कर लिया, कारण कवि ने कहा है : प्रतिबध्नाति हि श्रेयः पूज्यपूजा व्यतिक्रमः
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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