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________________ १०.] भावामी तुसती अभिनन्दन प्राय पर तुलसी के प्रति सब में समान मादर भाव और श्रदा देखी। एक दिन मैंने तुलसी मुनि से कहा- तुलसी ! तुम अपना समय औरों ही पौरों के लिए देते रहोगे या स्वयं का भी कुछ करोगे? पहले अपना पाठ पूरा करो फिर पोरों को कराम्रो। मेरी इस भावना को तत्रस्थ छात्रों ने विपरीत लिया और यदा-कदा यह भी सामने आया--ये चम्पालालजी हमें पढ़ाने के लिए प्राचार्यश्री को टोकते हैं, किन्तु मेरा प्राशय या कि पहले स्वयं अध्ययन नहीं करोगे तो फिर विशेष जिम्मेवारी पाने पर नहीं होगा। तुलसी मुनि ने बड़े विवेक से उसका उत्तर ठीक में दिया। गरुदेव श्री कालगणी का वह वात्सल्य भरा मादेश माज भी कानों में गूंज उठता है-चम्पालाल ! यदि तुलमी में कोई कसर रही तो दण्ड तुझे मिलेगा। मैं उन हृदय भरे शब्दों का विस्तार कैसे करूँ; नहीं पाता। आज भी लिखते-लिखते ऐसे सैकड़ों संस्मरण मस्तिष्क में दौड़ रहे हैं। एक के शब्दों में प्राबद्ध होने से पूर्व ही दूसरा और सामने आ खड़ा होता है। उसे लेना चाहता हूँ, इतने में तीसरा उससे अधिक प्रिय लगने लग जाता है। लेखमी लिख नहीं पाती। एक दिन श्रीकालूगणी ने मुझे प्रादेश फरमाया-तुलमी को बुलायो। मैं बुला लाया । अच्छा तुम दरवाजे पर बाहर बैठ जायो। मैं बैठ गया । कई दिनों तक यह क्रम चलता चला । उन दिनों गुरुदेव रुग्णावस्था में थे। उन्होंने अपने उतरवर्ती का भार हलका करना शुरू कर दिया था। तुलसी दिन-प्रतिदिन और विनयावनत होते गये। एक दिन वह भी पाया, जब मैंने अपने हाथों मे सूर्योदय होते-होते स्याही निकाली और एक श्वेत पत्र, लेग्वनी बममीदान ले गुरुदेव के श्री चरणों में उपस्थित हुमा । गंगापुर मेवाड़ का वह रंगभवन, उसके मध्यवर्ती उम विशाल हाल में इशानोन्मुख पूज्य गुरुदेव बिराजे और अपना उत्तराधिकार तुलसी मुनि को समर्पित किया । वि० सं० १९६३ भाद्रव शुक्लाह को प्राप श्री ने प्राचार्य-भार मंभाला। तब से अब तक की प्रत्येक प्रवत्ति में मैं ही क्यों समूषा साहित्य-जगत किसी न किसी रूप में परिचित है ही। पाज उनके शामन कान को पूरे पच्चीस वर्ष हो बले हैं। मंच की उदीयमान अवस्था का यह अमाधारण काल रहा है। : 4LODA MOME E AND SHAN
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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