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________________ ३९ किन्तु, कामकें चक्करमे पड़कर सिर टकरानेके पहले, सीखनेके समय -उस समय जब कि बच्चोंकी मानसिक और शारीरिक शक्तियाँ बढ़ती है, उन्हें प्रकृतिकी सहायता बहुत ही जरूरी है। फूल पत्ते, स्वच्छ आकाश, निर्मल जलाशय और विस्तृत दृश्य ये सब वस्तुयें वेंच और बोर्ड, पुस्तक और परीक्षाओंसे कम जरूरी नहीं हैं। ___ भारतवर्षका मन चिरकालतक इन सब विश्वप्रकृतियोके साथ घनिष्ट सम्बन्ध रहनेसे ही गढ़ा गया है और इस लिए जगत्की जड़चेतन सृष्टिके साथ आपको एकात्मभावसे व्याप्त कर देना-मिला देना भारतवर्षके लिए विलकुल स्वभाव सिद्ध है। भारतके तपोवनोंमें द्विजातियोंके बालक निम्नलिखित मन्त्रकी आवृत्ति किया करते थे:-- • यो देवोन्यौ योऽप्सु यो विश्वभुवनमाविवेश। __ यो औषधिपु यो वनस्पतिषु तस्मै देवाय नमो नमः ॥ अर्थात् जो प्रकृति देवता अग्निमें, जलमे, विश्वभुवनमें प्रविष्ट हो रही है और जो औषधियोमें तथा वनस्पतियोंमें है उसे नमस्कार हो, नमस्कार हो। अग्नि, वायु, जल, स्थलरूपविश्वको विश्वात्माके द्वारा सहज ही परिपूर्ण करके देखना सीखना ही सच्चा सीखना या शिक्षा है। यह शिक्षा शहरोंके स्कूलोंमें ठीक ठीक नहीं दी जा सकती। क्योंकि वहाँ विद्या सिखानेके कारखानोंमें हम जगतको एक प्रकारका यन्त्र समझना ही सीख सकते हैं। किन्तु आजकलके दिनोमें जो कामकाजमें मस्त रहनेवाले लोग हैं वे इन सब बातोंको मिस्टिसिजम् या भावकुहेलिका समझ कर उडा देवेंगे-इस पर उनकी श्रद्धा न होगी। अतएव हम नहीं चाहते कि इस विषयको लेकर हम अपनी सारी आलोचनाको ही. अश्रद्धाभाजन
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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